Friday, February 4, 2011

...लखटकिया में बैठा मानुष 'शिशु' को दिखलाता है ताव.

इंग्लिश बोली वाले सारे घुस गए हाल के अन्दर,
हिन्दी भाषी अरे बिचारे! देख रहे बन बन्दर. 

सभी जगह ही इंग्लिश बोली वाले हैं अधिकारी, 
हाय! शिशु! हिन्दी भाषी ही नौकर हैं नर नारी.  

जैसे फिक्स मैच पहले से उसी तरह होते कुछ जॉब, 
जान समझ कर अप्प्लाई कर सुन ले ओ महताब. 

ह्युमन राईट्स, इक्वालिटी जो जेंडर सदा बोलते, 
वो ही सारे सामाजिक हैं भेद जो सभी खोलते.  

जब से कार आयी लखटकिया कार को देता ना कोई भाव,
पर लखटकिया में बैठा मानुष 'शिशु' को दिखलाता है ताव.

काला कोट पहनने वालों से, हे भगवान् बचाए!

काला कोट पहनने वालों से, हे भगवान् बचाए!
साथ में काम किया पर वो फूटी आँख ना भाये,
पर वो फूटी आँख ना भाये कान के होते कच्चे
दिन भर झूठ बोलते खुद, खुद को कहते पर सच्चे 
'शिशु' कहें दोस्तों उनके साथ साल एक मैंने काटा 
काला कोट पहने वालों का सच, सही आपसे बांटा

Tuesday, February 1, 2011

प्रजापति की पिकनिक सब जमा हुए नरनारी.

बच्चों जैसी हंसी, धूप की थी वैसी किलकारी, 
प्रजापति की पिकनिक सब जमा हुए नरनारी.

आयोजक या संचालक का फिर कर्ता-धर्ता बोलूँ
समय के पक्के हैं 'हेमंत' 'शिशु' उनका जैसा होलूँ   

अबकी बार 'विनय' जी के संग पत्नी, पुत्र भी आये,
'सत्यवीर' जी याद आ गये सबके मन को भाये. 

१२ बजे 'वेद' आया 'संदीप' को फ़ोन मिलाया  
१ बजे तक रहा घूमता पर न उसे मिलपाया 

घंटे एक पार्क में उसने कितने ही चक्कर काटे
खत्म हुयी मीटिंग तब उसने, मुझसे अनुभव बांटे 

शुरू हुआ परिचय जब सारे लोग हो गए पूरे
खुलकर परिचय दिया सभी ने आधे-नहीं-अधूरे.   

नंबर वन की नेट्वोर्किंग के नंबरवन पर आये  
'एल.बी. प्रसाद जी' ने अपने अनुभव खूब सुनाये

नहीं नौकरी बदली अब तक ये दूजा है काम 
नाम के साथ बढ़ गयी पदवी और बढे हैं दाम

'चंद्रसेन जी' ने फिर अपने नाम का भेद था खोला
समय लगा बतलाने में पर सच-सच उनने बोला

जैसे जीवन नैया पार लगाने वाले केवट थे राम 
रेल चलाने वाले 'रामवीर जी' उनका अद्भुत काम 

हैं विनम्र और मृदुभाषी, नहीं रिटायर अबतक दिखते 
इनके पिताश्री भी कम ना अबतक बिन चस्मा के लिखते

लम्बे  जीवन का रहस्य खुलकर उनने बतलाया 
हम लोगों ने सुन उनको रस सत्संगी था पाया 

रामवीर के बाद 'शिवाजी' बोले फिर 'शिवराज' 
डिप्टी एसपी ओहदा उनका उनपर सबको नाज़ 

पिता विशम्भर उनके दिखते सीधे-साधे नेक 
रहो सादगी में सब लोग दे गए वो सन्देश 

गौतमबुद्ध नई यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर जी आये 
जिनके उत्तम सुविचार भी सबलोगों को भाये 

सुनी-सुनायी बातों पर ना करना तुम विश्वास कभी 
बोले- जो भी करो स्वयं से रखना ना दूजो आस कभी 

फिर महानगर संचार व्यस्था के 'अवनीश' पधारे 
आई.बी.एम्. के 'सुभाष जी' आये सबके लाड़-दुलारे 

'अम्बरीश', 'कैलाश', 'मगेन्द्र', 'पंकज' भईया आये 
'वर्मा जी' के भाषण सुनकर हम सब हर्षित मुस्काये 

एमबीए का छात्र 'मुकेश' बातें बहुत पते की बोला 
प्रजापति समाज का उसने असली भेद था खोला

'नज़र नज़र के फेर' से बोलूँ वो नेता हो सकता 
नेता बन कर वो समाज का कष्ट सभी हर सकता 

हैं मौसम विभाग में लेकिन सहजयोग के ज्ञाता 
'दुर्गा' है प्रसाद से मीठे उनको सब कुछ आता 

लिखते हैं - 'डी. प्रजापति' जी, दुश्मन जिनसे डरता
हैं सेना में कैप्टन फिर भी सहज योग के अच्छे कर्ता 

लय और ताल बनाये रखना रखो अच्छा इल्म 
पहले पढोलिखो सब फिर भले देखना फिल्म 

सुन्दरता भी दिखी उधर कुछ पत्नी संग जो आये
नाम नहीं लूँगा उनका मैं चहरे जो मन भाए.

मधुर-मधुर व्यंजन, पकवान और मिठाई आई   
परिचय बाद सभी के मुहं में जो पानी थी लायी 

'अपना खाना-अपना गाना' सबके सब ही भूल गए
खाकर स्वदिक खाना यारों पेट सभी के फूल गए

सहज योग की सहजबात फिर कैप्टन जी ने समझाई 
करना माफ़ 'शिशु' को चाचा उसे समझ ना आई

विनय ने ग्रुप की क्षमता से सबको अवगत करवाया 
विनय और हेमंत धन्य हों आपका काम सभी भाया

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