Friday, May 18, 2018

तुम इंसान हो, या कोई आसमानी हो।

ये जो दिखा रहे सबको कारस्तानी हो,
तुम इंसान हो, या कोई आसमानी हो।

मौज के वास्ते बनाई है फेक आईडी तुमने,
या, हक़ीक़त में किसी की जनानी हो।

मैंने कंप्यूटर में डिप्लोमा किया है 'शिशु',
बता देना जब कभी असली बनानी हो।

मुझे भी दे दो सबक शेर-ओ-शायरी का,
तुम बहुत बड़े सयाने और सयानी हो।

सीख लो कुछ काम अभी भी टाइम है,
फ़क़त बर्बाद क्यों कर रहे जवानी हो।

आसमानी: एलियन
जनानी: औरत

माझी मुझको मिला दीजिए बहती धारों से।

माझी मुझको मिला दीजिए बहती धारों से।
अब कोई भी मोह बचा ना मुझे किनारों से।।
देख लिया है जबसे तुमको,
बाकी कुछ भी बचा नहीं।
एक तुम्हारे सिवा दूसरा,
मुझको कोई जंचा नहीं।
अब ना शिक़वा नहीं शिकायत नज़र-नज़ारों से।

माझी मुझको मिला दीजिए बहती धारों से....
अब कोई भी मोह बचा ना मुझे किनारों से...

जिसको मन से चाहा मैंने,
उसका कुछ भी पता नहीं।
बाट देखती मंडप में थी
बोली उसकी खता नहीं।
अड़ी हुई है डोली, उठ ना रही महारों से।

माझी मुझको मिला दीजिए बहती धारों से...
अब कोई भी मोह बचा ना मुझे किनारों से...

बहुत हो गई देर अंधेरा
थककर चूर हो गया है,
चकवी से चकोर भी देखो
कितनी दूर हो गया है।
लगने लगा उसे फिर से डर चाँद सितारों से!

माझी मुझको मिला दीजिए बहती धारों से....
अब कोई भी मोह बचा ना मुझे किनारों से...

वहाँ हमारा लिखना-पढ़ना समझ लीजिये मिथ्या है।

लोकतंत्र में एक तरफ धन की होती बर्बादी है,
वहीं दूसरी तरफ आधी भूखी सोती आबादी है,
चयनित प्रत्याशी का जहाँ, मोल लगाया जाता है,
न्यायालय को सरेआम, पाखंड बताया जाता है,
जहाँ मिलावट रहित देश में दुर्लभ यारों खादी* है,
लूट मची हो खुलेआम, हर तरफ दिखे बर्बादी है,
और जहाँ पर संविधान की प्रतिदिन होती हत्या है!
वहाँ हमारा लिखना-पढ़ना समझ लीजिये मिथ्या है।

*नेताजी

Monday, May 14, 2018

धमकाते वे लोग अब जो पहले थे नेक

धमकाते वे लोग अब जो पहले थे नेक,
बाहर से सच्चे दिखें पर अंदर से फेंक।
पर अंदर से फेंक रखें लड़ने की आशा,
मर्यादा को त्याग, बोलते कड़वी भाषा।
'शिशु' कहें वे ही झगड़े-फ़साद फैलाते,
जो आपके जैसे लोगों को हैं धमकाते।

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