छूट!
डिस्काउंट के नाम पर लूट।
दम!
ताक़तवर हैं हम।
ग़म!
आंख हुई नम।
धूप!
बदले लड़की का रंगरूप।
निशानी
बाद में याद दिलाये, बीती हुई कहानी।
नेता!
हरदम लेता। कभी नहीं कुछ देता।
सरकारी चपरासी!
अफ़सर से ज्यादा लेता घूस में राशि ।
Saturday, January 24, 2009
Thursday, January 22, 2009
अश्रु बहे जो नयनों से, वो मेरे नहीं अकेले थे
अश्रु बहे जो नयनों से,
वो मेरे नहीं अकेले थे।
प्रिय भी उन दुख में शामिल थे,
जो कष्ट दिलों ने झेले थे।।
अधरों पर थे शब्द अधूरे,
जब हम बिछड़ रहे थे।
नहीं भूलना प्रियतम मुझको,
दिल दोनों के बोल रहे थे।।
व्यथा हृदय में ऐसी थी कुछ,
प्रियतम अब आयेंगे कब तक।
ये सोच के मन घबराता था,
कहीं प्राण निकल ना जाये तबतक।।
क्या प्रीति की रीति यही होती,
कि मिलन के बाद जुदाई हो।
जब मिले प्रिया-प्रीतम दोनों,
ऐसी बेला क्यों आयी हो।।
यह सोच रही थी मन ही मन,
आंशू की धारा बह निकली।
प्रिय चले गये एक पल ही में,
मैं खड़ी रही जैसे पगली।।
घर पहुंची कैसे द्वार खुला,
कुछ मालून नहीं पड़ा मुझको।
मैं बैठ गयी सिर टिका पलंग,
फिर याद किया दिल ने उनको।।
यादें जीवन का हिस्सा हैं,
उनको कोई बिसराये क्यों।
बोले थे प्रिय आकर एकदम,
वो कैसे यहां छिपाऊ क्यों।।
जिस तरह मिलन में प्यार बड़ा,
उस तरह जुदाई ना होती।
लेकिन वो वक्त जुदाई का,
उस प्यार को और बढ़ा देती।।
कहते हैं लोग मिले हरदम,
दूरी मिट जाये एकपल में।
लेकिन क्या सत्य ये सम्भव है,
खुशियाँ आयेगी हरपल में।।
उन प्यार भरी इन यादों से,
मुस्कान दौड़ गयी अधरों पर।
फिर मिलेंगें जल्दी हम दोनों,
खुशियों के अच्छे मौके पर।।
वो मेरे नहीं अकेले थे।
प्रिय भी उन दुख में शामिल थे,
जो कष्ट दिलों ने झेले थे।।
अधरों पर थे शब्द अधूरे,
जब हम बिछड़ रहे थे।
नहीं भूलना प्रियतम मुझको,
दिल दोनों के बोल रहे थे।।
व्यथा हृदय में ऐसी थी कुछ,
प्रियतम अब आयेंगे कब तक।
ये सोच के मन घबराता था,
कहीं प्राण निकल ना जाये तबतक।।
क्या प्रीति की रीति यही होती,
कि मिलन के बाद जुदाई हो।
जब मिले प्रिया-प्रीतम दोनों,
ऐसी बेला क्यों आयी हो।।
यह सोच रही थी मन ही मन,
आंशू की धारा बह निकली।
प्रिय चले गये एक पल ही में,
मैं खड़ी रही जैसे पगली।।
घर पहुंची कैसे द्वार खुला,
कुछ मालून नहीं पड़ा मुझको।
मैं बैठ गयी सिर टिका पलंग,
फिर याद किया दिल ने उनको।।
यादें जीवन का हिस्सा हैं,
उनको कोई बिसराये क्यों।
बोले थे प्रिय आकर एकदम,
वो कैसे यहां छिपाऊ क्यों।।
जिस तरह मिलन में प्यार बड़ा,
उस तरह जुदाई ना होती।
लेकिन वो वक्त जुदाई का,
उस प्यार को और बढ़ा देती।।
कहते हैं लोग मिले हरदम,
दूरी मिट जाये एकपल में।
लेकिन क्या सत्य ये सम्भव है,
खुशियाँ आयेगी हरपल में।।
उन प्यार भरी इन यादों से,
मुस्कान दौड़ गयी अधरों पर।
फिर मिलेंगें जल्दी हम दोनों,
खुशियों के अच्छे मौके पर।।
हे मातृभूमि आज़ादी की...!
हे मातृभूमि आज़ादी की
आज़ादी दो निर्धनता से
सब हष्ट-पुष्ट बलवान बने
आज़ादी दो निर्बलता से
निर्धन-धनवान न हो दुश्मन
मन में उनके प्रकाश भर दो
सब मिलकर काम करे अच्छा
उज्ज्वल मन तुम उनके कर दो
शत्रुता मिटे, भाई-चारा
बन्धुत्व भावना कायम हो
ना शरहद कोई ओर रहे
संसार में हर कोई मानव हो
शिक्षा हो ऐसी सभी जगह सब
काम करें, मेहनतकश हों
गांवो में भी उजियार हो
भय, अंधकार से दूरी हो
धन-धान्य रहे, घर मिले सभी
सबके सपने कुल पूरे हों
जो चाहें पूरा हो जाये
ना वादे कोई अधूरे हों
आतंक रहे ना आतंकी,
कुछ ऐसा तुम उपाय कर दो
कटुता है उनके जीवन में
सब प्रेमभाव मन में भर दो
न जंग हो ना हो बमबारी
न हो कोई मारा-मारी
सब चोर-लुटेरे सुधर जायें
हर पुलिस से उनकी यारी
नेता सब अच्छे हो जाएं
वादे हो उनके सब सच्चे
हैं देश चलाने वाले जो
सारे के सारे हों अच्छे
महिला की इज्जत हो पूरी
अधिकार मिले जो हैं उनके
ना हो उत्पीड़न कैसा भी
परिवार मिले उनको मनके
'शिशु' कहें अगर ये हो जाता
तो इसे कहूंगा आजादी
है किन्तु, परन्तु बात नहीं
कहते हैं अभी है बरबादी
आज़ादी दो निर्धनता से
सब हष्ट-पुष्ट बलवान बने
आज़ादी दो निर्बलता से
निर्धन-धनवान न हो दुश्मन
मन में उनके प्रकाश भर दो
सब मिलकर काम करे अच्छा
उज्ज्वल मन तुम उनके कर दो
शत्रुता मिटे, भाई-चारा
बन्धुत्व भावना कायम हो
ना शरहद कोई ओर रहे
संसार में हर कोई मानव हो
शिक्षा हो ऐसी सभी जगह सब
काम करें, मेहनतकश हों
गांवो में भी उजियार हो
भय, अंधकार से दूरी हो
धन-धान्य रहे, घर मिले सभी
सबके सपने कुल पूरे हों
जो चाहें पूरा हो जाये
ना वादे कोई अधूरे हों
आतंक रहे ना आतंकी,
कुछ ऐसा तुम उपाय कर दो
कटुता है उनके जीवन में
सब प्रेमभाव मन में भर दो
न जंग हो ना हो बमबारी
न हो कोई मारा-मारी
सब चोर-लुटेरे सुधर जायें
हर पुलिस से उनकी यारी
नेता सब अच्छे हो जाएं
वादे हो उनके सब सच्चे
हैं देश चलाने वाले जो
सारे के सारे हों अच्छे
महिला की इज्जत हो पूरी
अधिकार मिले जो हैं उनके
ना हो उत्पीड़न कैसा भी
परिवार मिले उनको मनके
'शिशु' कहें अगर ये हो जाता
तो इसे कहूंगा आजादी
है किन्तु, परन्तु बात नहीं
कहते हैं अभी है बरबादी
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