Wednesday, June 3, 2009

हे संसद के देवता तुमसे मेरी आस...............

कोटि-कोटि तुमको नमन, तुमसे है अरदास,
हे संसद के देवता तुमसे मेरी आस!

बिजली, पानी गाँव में पहुंचा दो सरकार,
सड़क बना दो देल्ली जैसी तुमसे है दरकार!

काम दिलादो गाँव में, हो जैसी जिसकी शिक्षा,
मांग रहा हक़ आपसे नहीं समझना भिक्षा!

गमन-आगमन हो सुगम ऐसा करो उपाय,
रेल चले या ना चले बस लेकिन चल जाय!

कसम तुम्हे जो दी गयी उसपर खरे उतरना,
लाज ना जाये कुर्सी की ऐसा कुछ न करना!

विनती अंतिम एक है, हे संसद के देव,
रोटी, घर, कपडा मिले उत्तम स्वस्थ सदैव!

गलत कहा यदि दास ने तो देव रखो ये ध्यान,
क्षमा करो 'शिशु' समझ कर या अज्ञानी जान!

Monday, June 1, 2009

जरूर-जरूर मिलेंगे जरूरी नहीं.........

जरूर-जरूर मिलेंगे जरूरी नहीं,
मिलेंगे इसलिए नहीं कोई मजबूरी नहीं है!
इशारों- इशारों में अब बात कम ही होती है,
क्यूंकि दोनों के बीच अब वो दूरी नहीं है!
दूरियां बांटी है मोबाइल और लिविंग रिलेशन ने
आगे और सुनो मियां बात अभी पूरी नहीं है!
फिल्मे भी कम ज्ञान नहीं देती दीवानों को,
प्यार कैसे करें सिखाते हैं ज़माने को,
अब लैला और मजनू कोई नहीं बनता,
मौका मिला एक दूसरे को फ़ौरन बदलता,
अब प्यार के लिए फैशन भी जरूरी है,
ब्रांड इसलिए पहना क्यूंकि मजबूरी है!
हाँ हमारे ज़माने की और बात थी
'शिशु' वो बात यंहा बताना जरूरी नहीं है!

झूठा सभी जानते उसको फिर भी भाव सभी देते.........

दिन भर झूठ बोलता रहता
काम नहीं करता कोई
सत्य को झूठ बोलता चलता
झूठ भी झूठ कहे वो ही

झूठ बोलकर मिली नौकरी
झूठे उसके काम
झूठ खुशामद करता रहता
झूठे ही करता बदनाम

झूठ मूठ की करे लडाई
झूठा रोके झूठ दिखाता
रोज देर से ऑफिस आता
झूठ बोलकर के बच जाता

झूठे रूठ सभी से जाता
झूठ बोलदो मान भी जाता
काम करे जो गलत ही करता
झूठ बोल सब कुछ पा जाता

झूठा सभी जानते उसको
फिर भी भाव सभी देते
झूठ बोलकर उस झूठे से
अपना काम करा लेते

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