पतझड़ की शुरुआत अभी है,
अभी उदासी छायी क्यों?
कोयल के रागों से इतनी,
ख़ामोशी घिर आई क्यों?
बियाबान जंगल दिखते!
क्यों नदी बिना जल धारा है?
चरागाह दिखते ऐसे क्यों,
जैसे गया उजाड़ा है?
दूर-दूर तक पथिक न कोई,
पुरवइया बस डोल रही है,
पछुवा आओ हम सो जाएं,
हौले हौले बोल रही है।
बहुत हो गया, अब मत रूठो,
दिल से तुम्हें पुकारा है।
नीरसता को छोड़ो! देखो,
पतझड़ कितना प्यारा है!!
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