Friday, May 22, 2009

कठिन काम गार्ड का है बाहर ही बैठा रहता

कठिन काम गार्ड का है बाहर ही बैठा रहता,
गर्मी, सर्दी, बरसातों की असली मार है सहता

घंटे १२ ड्यूटी करता, हरदम हँसता जाता
फिर भी अन्दर वालों से वह पैसा कम ही पाता

कहीं भूल से कोई अन्दर बिना पूछ कोई जाता
अगले दिन ही मालिक की वह कड़ी डांट पा जाता

भूल से भी यदि कहीं रात में नीद उसे आ जाती
अगले दिन की उसकी काम से छुट्टी कर दी जाती

'शिशु' की विनती ऑफिस से उसको कूलर दिलवादो
कुछ पैसा हम लोग लगायें कुछ ऑफिस से दिलवादो

रूठ गई प्रेमिका सहेली ने बताया है

रूठ गई प्रेमिका, सहेली ने बताया है,
पहला प्रेम पता चला, पहली ने बताया है,

पहली को दरियागंज दूसरी को संगम में,
'दिलवाले' एक नही कई बार दिखाया है!

पहली को दिल्ली हाट, दूजी देख रही बाट,
अगले दिन उसको भी लोधी पार्क लाया है!

सोने की पालिश के कुंडल दिए पहली को,
कही रूठ जाए ना वही दिए अगली को!

'शिशु' कहें यही प्यार अब दिल्ली में दीखता है,
छोटा भाई बड़े से यह मुफ्त में ही सीखता है!

Thursday, May 21, 2009

बड़ी लगन करके पप्पू ने, दूजे पप्पू से पिण्ड छुड़ाया

शौख़ एक ऐसा चर्राया
वोट डालने की ठानी।
बहुतों ने कितना समझाया
बात किसी की ना मानी।।

नाम से पप्पू पहले ही था
इसीलिए पप्पू पद छोड़ा।
जनरल डिब्बे में जा बैठा
भीड़-भाड़ में ही दौड़ा।।

जेब कटी और बैग भी टूटा
लेकिन हिम्मत ना हारी।
दूजा पप्पू अब ना बनना
कोशिश उसकी थी जारी।।

शहर से कस्बा जैसे पहुंचा
बस में भीड़-भाड़ भारी।
दूजा साधन था एक टैम्पो
उसमें थी मारा-मारी।।

कोस एक पैदल ही चल गया
नशा वोट का था ऐसा।
भरी धूप में ऐसा लगता
मौसम हो बरखा जैसा।।

मां जी बोली खाना खाओ
पप्पू देर हुई भारी।
पप्पू बोला पहले वोट
उसके बाद बात सारी।।

वोट डाल 'शिशु' जैसे आया
स्याही का निशान मन भाया।
बड़ी लगन करके पप्पू ने
दूजे पप्पू से पिण्ड छुड़ाया।।

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