...तो, यह बात क़रीब क़रीब तब की है जब गाँव में कमल खिलते थे, नवाबों के यहाँ बचे खुचे हाथी थे, किसान बैलगाड़ी से, मजदूर पैदल और साधारण-नौकरीपेशा लोग साइकिल की सवारी करते थे, तथा सड़क के नाम पर चकरोट थे, जंगल से होते हुए पगडंडियां भूल भुलैया जैसी खेतों की तरफ जाती थीं, खेत की मेढ़ पर साइकिल चला सकते थे और घरों में दूध दही के अलावा चाय की जगह सिखन्ना पिया जाता था।
असल में बात यह है, यह बात करीब तीस चालीस साल पहले की है। किसी गाँव में साप्ताहिक हाट लगती थी, वहाँ विभिन्न गांवों के लोग ख़रीदारी के अतिरिक्त शादी विवाह तय करते थे। रिश्तों की पारस्परिक खबरें, जैसे मुंडन, चिदना, फलदान आदि खबरें भी एक दूसरे गाँव वालों को दे देते थे। ग़रीब-मजदूर दो बोतल लेकर हाट जाते-एक में जलाने के लिए मिट्टी का तेल और दूसरे में खाने का सरसों का तेल। मास मछली के शौकीन कलिया खरीदते और किसान बीज और सब्जी बेचते थे। बाज़ार में सीसा, कंघा, चुटीला, क्रीम, पाउडर की दुकानें भी लगती थीं जहाँ नई नवेली बहुवें, विवाहित लड़कियाँ और महिलाएँ सौंदर्य प्रसाधन खरीदने आती थीं।
इसी हाट में पहली बार गोबरधन ने तारा को देखा था। तारा ताराचंद की सबसे छोटी लड़की थी और गोबरधन अहिबरन का बड़ा लड़का। दोनों ही अलग अलग गाँव से थे। गोबरधन मेला हाट में सौंदर्य प्रसाधनों की दुकानदारी करता था, गले में गोल गोल करके रूमाल बांधता था, हाथ में नंबर वाली घड़ी और काली शर्ट के साथ सफ़ेद पैंट पहनता था। बिल्कुल छलिया लगता। गाँव की भौजाइयों का दुलारा था, हंसी हंसी में औरतें उससे कहतीं 'का रे गोबरधन आज कहाँ बिजली गिरायेगा।', वह खिलखिलाकर साइकिल की घंटी बजाकर कहता 'हटिए भौजी, बिजली का पता नहीं लेकिन साइकिल आज जरूर तुम्हारे ऊपर गिर जाएगी।' ख़ूब हंसी मजाक करता लेकिन मजाल जो उसने कभी किसी बहू बेटी पर ग़लत नज़र डाली हो।
गोबरधन आठवीं पास था। गाँव में स्कूल न था इसलिए बच्चे पास के गाँव में स्कूल जाते थे जहाँ आठवीं तक ही पढ़ाई होती थी। वह पड़ोसी गाँव के सन्तू कुम्हार के साथ पहली बार कानपुर से सामान लाया था। उसके पहले वह कुछ दिन पंजाब रहकर आया था जहाँ परचून की दुकान पर काम किया था, कहते हैं मालिक उसे आने ही नहीं दे रहा था क्योंकि उसके काम करने के बाद दुकानदारी में बहुत ही बढ़ोत्तरी हो गई थी। मालिक ने तो उसकी तनख़्वाह भी बढ़ा दी थी, लेकिन वह किसी बहाने से गाँव भाग आया था। अब गाँव आए उसे दो साल से ज़्यादा हो गया था। गाँव ही उसके लिए शहर था।
तारा को देखकर ऐसा लगता जैसे वह आसमान का तारा हो, बड़ी बड़ी आँखें, लंबा कद, गोरा रंग और भरपूर यौवन। बचपन में अपने मामा के घर पली बढ़ी थी अभी हाल ही में गाँव आई थी, उसकी शादी को कुछ ही महीने बाकी थे। और पुरानी कहावत के अनुसार, डोली माँ बाप के घर से निकलनी चाहिए और अर्थी पति के घर से, इसलिए शादी का इंतजाम गाँव में किया जा रहा था।
हाट के अगले दिन गोबरधन फेरी को निकला गाँव गाँव भटका, उसे तारा की तलाश थी, दुकानदारी में मन न लगा। अधिकतर गांवों की महिलाओं को वह भौजी कहता और महिलाएं उसे अपना देवर समझती थीं। मज़ाक करतीं, और समान खरीदतीं, कोई मोलभाव नहीं, सामान में इतना मुनाफ़ा कमाता जैसे दाल में नमक। उधार भी कर लेता। हाट के दिन जब तारा उसकी दुकान पर आई थी तभी से सम्मोहित था वह। वैसे वह स्वयं भी कम सम्मोहक न था। हालांकि उसके रिश्तेदारी और आसपास की जवान लड़कियाँ उस पर जान छिड़कती थीं लेकिन उसने कभी भी उन पर गौर न किया। तारा में न जाने क्या उसे दिखाई दिया, हाट के दिन से ही उसी की सूरत उसे दिखाई दे रही थी। जब तारे निकल आए तब घर वापस आया लेकिन उसे तारा न मिली। गाँव का नाम उससे पूछने की हिम्मत न हुई थी उस दिन। पूछता भी भला कैसे? हाट में आसपास के गांवों के लोग ही आते थे और जिस दिन हाट न होती उस दिन वह उन गांवों में फेरी करता था।
गोबरधन दिनों दिन उदास रहने लगा, दुकानदारी में मन न लगता। औरतें उसका इंतजार करतीं, जब कभी किसी गांव जाता खूब उलाहना देतीं। चुपचाप सुन लेता। घर में सब कहते सूख कर काँटा हुआ जा रहा है न जाने क्या रोग लगा है कोई कहता टीबी है कोई कहता कालाजार है जितने मुँह उतनी बातें। लोग झाड़फूंक की सलाह देते। लेकिन प्यार के रोग की दवाई है क्या भला?
कई महीने बीतने के बाद एक दिन एक गाँव में फेरी के समय उसने तारा को कुंवें से पानी भरते हुए देखा। उसके चेहरे पर पहले जैसी रौनक न थी, चेहरा मुरझाया सा, उतरी हुई सूरत देख कर ऐसा लग रहा था जैसे वह तारा न होकर उसकी बड़ी बहन हो। साइकिल खड़ी करके समान बेचने लगा, औरतों का जमावड़ा लग गया कोई कुछ खरीदता कोई कुछ। बड़ी हिम्मत करके उसने पूछा यह कौन है? किसी औरत ने कहा बेचारी, भाग्य ही फूटे हैं इसके। दूल्हा बारात लेकर आ रहा था कि गाँव के करीब साँप ने काट लिया? न फेरे हुए न शादी, लेकिन सब इसे दोष देते हैं। बेचारी! शादी की रात को कुंवें में कूद गई थी वो तो अच्छा हुआ किसी ने देख लिया और जान बचा ली। बड़ी चुलबुली लड़की थी, अब देखो कैसा हाल है। कौन जाने शादी होगी भी या कौन इससे करेगा? रिश्तेदार कहते हैं कुंडली में दोष है सो पंडित ने भी कह दिया है बारात आने से पहले ही दूल्हा मर जाएगा। भगवान तरस खाए!
गोबरधन घर आया। जब देखो तब तारा का चेहरा दिखाई देता। वह तारा को ख़ुश देखना चाहता था। वैसे ही जैसे पहली बार हाट में देखा था, उसका चेहरा, उसकी बातें चलचित्र की तरह उसके दिमाग़ में घूमने लगीं। क्या करे कोई उपाय न सूझता। रोज उसी गांव में फेरी के लिए जाता। कभी वह दिखती कभी नहीं। एक दिन हिम्मत करके ताराचंद के दरवाजे पर बैठकर पानी मांगा। तारा की भौजाई पानी लेकर आई। उसने अंजुली लगाकर पानी पिया। बातों बातों में पूछ लिया घर में सब ठीक भौजी। उसने सब दुःख कह सुनाया। गोबरधन ने कहा भौजी बुरा न माने एक बात कहें, तारा को पहली बार हाट में देखा था, बड़ी खुश लग रही थी, मुझे उसका दुख देखा न जाता। तारा की भौजाई ने कहा क्या कहते हो भैया किसी न सुन लिया तो क्या कहेगा। क्या कहेगा मेरे मन में कोई पाप नहीं है, बस वह मुझे अच्छी लगती है, दिन रात आठों पहर वही वह दिखाई देती है। भगवान क़सम झूठ बोलूं मुझे नाग डस ले। तारा दरवाजे के ओट से सब सुन रही थी। डर से कांपने लगी।
गोबरधन घर आया, मन हल्का लग रहा था, शाम को तारा की भौजाई ने उसके भाई को डर की वजह से सब हाल कह सुनाया। उसके क्रोध का ठिकाना न था, वो तो रात थी नहीं तो उसी समय लठैतों को लेकर उसकी हड्डी पसली तोड़ने निकल जाता, अगले दिन सुबह वह 8 से 10 आदमियों के साथ गोबरधन के गाँव में धावा बोलने निकल पड़ा। गाँव पहुँचने से पहले ही रास्ते में गोबरधन को देख लोगों ने पिटाई शुरू कर दी। खूब खरी खोटी सुनाई। लहू से लथपथ गोबरधन बोल रहा था मुझे तारा को खुश देखना है बस और कुछ नहीं। इधर तारा को जब पता चला उसका बुरा हाल था, वह भागी भागी अपनी भौजाई के पास उसकी जान की भीख मांगने लगी। बोली उसे बचा लो उसका क्या दोष है, मैं तो ऐसा कुछ नहीं सोचती।
गोबरधन के गाँव में किसी ने ख़बर पहुंचाई। उसके हिमायती भी कम न थे, वह पासियों का गाँव था, एक से बढ़कर एक लठैत। सब बदला लेने पर उतारू थे। गोबरधन ने इशारे से सबको रोका। अगले दिन पंचायत बैठी, दोनों गांवों के लोग जमा हुए, गोबरधन घायल था, पंचों ने फैसला सुनाया जो गोबरधन चाहेगा वैसा ही होगा। किसी ने कहा गोबरधन ने सभी को माफ किया, पुलिस रिपोर्ट नहीं लिखाई जाएगी।
कुछ दिनों बाद गोबरधन जब कुछ ठीक हुआ, वह सीधे तारा के घर पहुँचा और घरवालों के सामने कहा कि, "भले ही मुझे आप सब मिलकर मार डालें, या मुझे सांप डस ले, कोई ग़म नहीं। लेकिन मैं तारा को ख़ुश देखना चाहता हूँ"। उस दिन तारा ने गोबरधन को सही से देखा था। वह उसकी निडरता और निश्छल प्रेम पर मोहित हो गई थी। निडरता में सच्चाई छिपी होती है और सच्चाई जब जबान पर आती है तब दुश्मन भी उसका मुरीद हो जाता है। तारा का बाप ताराचंद अहीरों का अगुआ था। उसके पास चालीस भैंसे थीं, कई एकड़ जमीन थी और कई खेतों को मिलाकर एक बड़ा चारागाह बना रखा था। दरवाजे पर बीस लाठियां हमेशा रखीं रहती थीं। भाले छुरी छप्पर में घुसे रहते थे।
उसे गोबरधन पर तरस आया बोला भूल जा बेटा उसको, क्यों अपनी जिंदगी बर्बाद करने पर तुला है। वह अभागन है जो भी उसको ब्याहने आएगा मर जायेगा। गोबरधन ने कहा कोई परवाह नहीं दादा आप हाँ कह दीजिए। पंचायत में पंचों ने कहा यह शादी यदि होगी तो ताराचंद के घर का हुक्का पानी बंद कर दिया जाएगा। ताराचंद को हुक्का पानी से बढ़कर बेटी की फिक्र थी। लठ्ठ लेकर पंचों को दरवाजे से भगाया। इधर गोबरधन के घरवालों को भी यह फिक्र थी कि कहीं वास्तव में उनके बच्चे की बलि न चढ़ जाए। जबकि इधर गोबरधन और तारा दोनों में प्रेम का बीज अंकुरित हो गया था। तारा हमेशा उसी के बारे में सोचती रहती। उसके चेहरे पर फिर से हरियाली आ गई थी। गोबरधन गबरू जवान दिखने लगा। ताराचंद ने शादी की तैयारी शुरू कर दी थी। और उधर दोनों परिवार वालों के यहां कुछ लोग साजिशें रचने लगे थे। गोबरधन की माँ नहीं चाहती थी कि वह तारा से शादी करे उसे अशुभ दिखाई देता था और वह सपने में देखती कि उसके बेटे को सांप ने काट लिया है। वह तारा को जहर देने के लिए मन बना चुकी थीं और उधर तारा का भाई वास्तव में गोबरधन को सांप से कटवाने पर योजना बना चुका था, सपेरों को सुपारी दे चुका था और किसी बहाने उसे सांप से कटवाने की सोच रहा था। लेकिन बारात के एक दिन पहले तारा की भाभी ने तारा को बता दिया कि, उसके भाई क्या योजना बना रहे हैं। इधर गोबरधन की छोटी बहन ने माँ की सब करतूत उसे कह सुनाई कि कल शादी से पहले सगुन में भेजी गई मिठाई में जहर मिलाकर वे तारा को मार डालेंगीं।
इधर गोबरधन परेशान था उधर तारा। रात को गोबरधन तारा के गाँव जा पहुँचा और अपनी माँ की योजना कह सुनाई, इधर तारा की भाभी ने अपने पति की योजना का खुलासा कर दिया। फिर क्या सुबह होने से पहले दोनों पंजाब जाने वाली ट्रेन में बैठकर पंजाब रवाना हो गए। वहाँ गोबरधन ने अपने पहले मालिक सरदार जोरावर सिंह को सब हाल कह सुनाया। जोरावर ने उन दोनों की गुरुद्वारे में शादी करवा दी और रहने को घर दिया। आज तारा और गोबरधन का बेटा डॉक्टर है, और बेटी भी डॉक्टरी की पढ़ाई जालंधर से कर रही है। वे दुबारा वापस कभी अपने गांव नहीं आए। तारा का भाई और गोबरधन की माँ कई बार पंजाब जाकर उनसे माफी मांगने गए। हालांकि दोनों ने अपनों को माफ कर दिया है, लेकिन उन्हें आज भी उनकी माफी में वही साजिशें नज़र आती हैं।