Saturday, October 5, 2019

संस्मरण-5

भगवान उनकी आत्मा को शांति दे। 'चल झटुआ' उनका तकिया कलाम था। बीच राह में बैलगाड़ी खड़ी कर देना, बैलों को बांधते समय उनकी रस्सी ढीली छोड़ देना ताकि राह निकलते व्यक्ति को वे झटक जरूर दें। हमेशा मरकहा (मारने वाले) बैल पालते थे, जो उनके अलावा किसी को भीदेखकर  सींग हिला देते थे। अपने मुहल्ले के हर बच्चे का उपनाम उनका दिया हुआ था; किसी को मरहना कहते, किसी को घुनघुनिया, किसी को हगोड़ा-पदोड़ा, झुंझुनिया, टूटा और किसी किसी बच्चे को वे उसके बाप या दादा के नाम से बुलाते जैसे, 'और बुद्धा क्या हाल है'। हर बच्चे की मौसी का हाल चाल पूछते, और बिजइया तोरी मौसी का क्या हाल चाल?, छोटे बच्चे को क्या पता कह देता 'ठीक हैं।' फिर कहते 'अबकी आईं नहीं,' और कहकर खिलखिला कर दाँत निपोर देते।

खेत की जुताई करते समय बैलों की ऐसी तैसी कर देते, ख़ूब चिल्लाते, हरैया, हरैया, क तोरी पलवैया की, मानिहै नाइ, झटुआ और फिर जब ख़ुद थक कर चूर हो जाते तब बैलों की रस्सी इतनी ढीली छोड़ देते ताकि वे तबतक दूसरे के खेत में एक दो मुहँ मार लें।

खाली समय रस्सी ऐंठते, गूँथ बाँधते, खूँटा गाड़ते, जेतुआ बनाते या लहड़ुआ की रस्सी कसते और नहीं तो चारपाई की अदवायन ही कसने लग जाते। और यदि और ज़्यादा ही समय हुआ तो छप्पर को थोड़ा ऊपर करवाने के लिए लोगों को जमा करते। दोपहर में देखते जब लोग ताश खेल रहे होते तब जानबूझकर वहाँ पहुँच जाते, कुछ लोग कट लेते। बाकियों से कहते चल रे थोड़ा छप्पर ऊपर उठवाना है। लोग मन मसोजकर जाते। और ऊपर उठाने की बजाए नीचे खींचते। तब चिल्लाकर कहते झटुआ, ऊपर करना है, कुछ लोग मजाक में कहते अरे हमें तो लगा आप उतार रहे हो।

खेतों से कभी खाली हाथ न आते। कुछ नहीं तो एक थोमारिया (छप्पर टिकाने की लकड़ी) ही कंधे पर उठाकर आ गए। सड़क पर कोई रस्सी या कपड़ा पड़ा है उसे उठाकर छप्पर में खोंस दिया। यदि किसी ने पूछ दिया इसका क्या करोगे, कहते चल झटुआ तुझे कुछ पता नहीं।

गांव में कोई भी मर जाता उसकी मैजल (शवदाह संस्कार) में ज़रूर जाते। लोग कहते इनका एक थैला मैजल के लिए हमेशा तैयार रहता है। उसमें एक लोटा, एक धोती, आधी बांह का कुर्ता जिसमें पेट चिरी जेब होती पड़ा रहता। उनके पास स्टील की एक गोल गोल तम्बाकू रखने की डिब्बी थी। कभी कभी तो उसे भी चमकाते। साफ करते, धूप में उसे सुखाते और कपड़े से छानकर उसमें चूना भरते। एक दम ताजा चूना। चोट के निशान हर जगह शरीर पर दिखाई देते। इस कारण उनके हाथ या पैर में भी चूना लगा होता। उनके बंगले (जहाँ जानवरों को रखा जाता है) में लभेरे का पेड़ लगा था। बच्चे डमरू बनाने के लिए वहां से लभेरे के फल तोड़ लाते, यदि देख लेते अच्छी खबर लेते, पता होने के बावजूद कहते 'झटुआ क्या करेगा इसका'।

औरतों में ख़ास दिलचस्पी रखते। हमेशा सड़क किनारे अपने छप्पर के नीचे बैठे रहते। राह चलती किसी औरत को वे जब तक निहारते जब तक वह नज़र न नीची कर लेती। किसी महिला ने कह दिया क्या दीदे फाड़कर देख रहे हो, तब वे कहते तुम्हें किसे पता कि मैं तुम्हें देख रहा हूँ। एक बार किसी अनजान औरत ने कह दिया क्या देख रहे हो, तपाक से बोले, अच्छी बहुत हो आजतक अच्छी औरत देखी नहीं है इसलिए सोचा तुम्हें ही देख लूँ।  कई बार वे तब तक देखते रहते जब तक कोई आँखों से ओझल न हो जाए। कोई नई नई शादी करके रास्ते से निकलता उससे जानबूझकर राम राम कहते। और यदि जवाब न मिलता अपने आप ही कह देते ' लिवा लाए, अच्छा किया!' फिर अचानक मुस्की छोड़ते।

ऐसे ही न जाने कितने लोग मेरी यादों में घर बनाकर बैठे हैं भगवान क़सम अब हँसी आती है लेकिन उनके जैसा दूसरा कोई और था ही नहीं। पता नहीं जब खाली होता हूँ ऐसी ही यादों की उथल पुथल मच जाती है। सोचता हूँ, मेरे बारे में भी किसी न किसी को ऐसे ही विचार आते होंगे। यदि कोई मेरे बारे में लिखना चाहे मुझसे लिखवा लेना भगवान कसम निराश नहीं करूंगा...😊

No comments:

Popular Posts

लिपट रहे जो लभेरे की तरह हैं.

 रंग हमारा हरेरे की तरह है. तुमने समझा इसे अँधेरे की तरह है. करतूतें उनकी उजागर हो गई हैं, लिपट रहे जो लभेरे की तरह हैं. ज़िंदगी अस्त व्यस्त ...