तब
तुमको लोटा डोर याद है?
नृत्य कर रहा मोर याद है?
झींगुर का वो शोर याद है?
याद तुम्हें आ जाएं प्यारे,
लौट जाइए, गाँव तुम्हारे।
जंगल की वे भूल भुलैया,
ताल तलैया, नार गुजरिया,
मटरू चाचा, गंगा भइया,
बाट जोहते, खड़े पुकारें,
लौट आइए, गाँव दुलारे।
अब
भावुकता अब गाँव नहीं है,
पक्की छत है, छाँव नहीं है,
रिश्तों में ठहराव नहीं है,
अपने अपनों से हैं हारे,
क्यूँ लौटें हम गाँव हमारे?
पहले सा व्यवहार नहीं है,
खुशियों का त्यौहार नहीं है,
अपनापन भी,प्यार नहीं है,
और न दिखते हैं चौबारे,
तब क्यूँ लौटूँ अपने द्वारे?
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