Sunday, November 4, 2018

त्यौहारों को मजहब में तुम, बाँट रहे हो भाई क्यूँ?

कम-से-कम शब्दों में, बात समझने वाले,
मुझसे बकवादी तुम, छाँट रहे हो भाई क्यूँ?

नफ़रत, हिंसा, मारपीट फैलाने वाले कौन?
मेरे प्रश्नों पर मुझको तुम, डांट रहे हो भाई क्यूँ?

जिनसे खुशियाँ मिलती हैं उन पर सबका हक,
त्यौहारों को मजहब में तुम, बाँट रहे हो भाई क्यूँ?

नेतानगरी खूब समझता, मुझको मत समझाओ!
उल्लू जन मानस का तुम, काट रहे हो भाई क्यूँ?

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