Thursday, January 29, 2009

उपदेशों की बानगी

हमारे यहां एक कहावत है- ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’।

उपदेश
और उपदेशक हमारे देश की महानता को दर्शाते हैं। कहा जाता है कि हमारे देश से बढ़कर दुनिया में कहीं भी अच्छे उपदेश और उपदेशक और कहीं नहीं हैं। बात सौ आने सही है। अब उपदेश भी ऐसे-ऐसे हैं कि जरूरी नहीं कि वो हर किसी के जीवन में काम आयें। यदि इन उपदेशको को सुनें तो उन्हें समझने के लिए भी उपदेश लेने पड़ते हैं। यहां कुछ उपदेशों की बानगी देखिये-

धर्म गुरू (प्रवचन करते बाबा) कहते हैं बच्चा दुनिया के बखेड़ों में मत पड़ो। दुनिया बहुत लुटेरी है। जो कुछ कमाओ भगवान को अर्पण करो। मुझे कुछ नहीं चाहिए लेकिन आश्रम में दान-धर्म हो जाये तो आने वाली पीढ़ी को अर्धम से बचाया जा सकेगा।

पादरी साहब उपदेश देते हैं-प्रभु ईशा की सरन गहो, वो तुम्हारे पाप की गठरी को सिर उठाये सूली पर चढ़ गया था। न कुछ दान करो, न तपस्या की ज़रूरत है और न ही व्रत की आवश्यकता है, जमकर शराब पियो और प्रभु ईशा पर ईमान लाओ। बस। सब ठीक होगा।

आरएसएस और हिन्दू धर्म के आधुनिक विचारक उपदेश देते हैं-बाप-दादा की लीक पीटते जाओ। यही सम्पूर्ण वेद-शास्त्र का निचोड़ है। संस्कृति और सभ्यता को समझो। धर्म पर चलो। स्त्रियों को घर पर रहकर पति की सेवा और सत्कार में मन लगाना चाहिए। पाश्चात्य देशों ने हिंदू धर्म का बेड़ा गर्क कर दिया है। इसलिए उनका बताये रास्तों पर न चलकर प्राचीन धर्मशास्त्रों को पढ़ो और उन पर अमल करो।

यार-दोस्तों के उपदेश कुछ ऐसे होते हैं-तुम भी यार क्या हो? बस काम-काम और काम! कभी हमारे साथ चलो। खाओ-पियो बेटा। कोई अमर नहीं है। सब यहीं का यहीं रह जायेगा। फिर पीछे बोलोगे यार सारा जीवन व्यर्थ गया। इसलिए अभी से मजे करो। भाड़ में जाय दुनिया।

ऑफिस में बॉस समझाते हैं-गीता पढ़ो। उसमें लिखा है कर्म किये जा फल की इच्छा करना मनुष्य का काम नहीं। यदि कर्म करोगे तो फल तो कभी न कभी मिलेगा ही। ऑफिस के आर्थिक और प्रशासनिक और आर्थिक विशेषज्ञ समझाते हैं क्या फर्क पड़ता है तुम स्टॉफ रहो या कंस्लटेंट तनख्वाह मिलनी चाहिए और वो तुम्हे मिलेगी। छुट्टी और पीएफ का क्या करोगे वो सब को मोह-माया है बच्चा।

मां-बाप समझाते हैं-बेटा बहू से कहो कभी-कभी गांव भी आया करे। क्या यह उसका घर नहीं? हमारा भी मन करता है कि हम बेटा बहू साथ-साथ घर आयें तो अच्छा लगता है। 80 साल की बुढ़िया (दादी मां) समझाती है-बेटा अब तुम सयाने हो गये हो। घर-बार की फिक्र करो। ऐसी चाल चलो जिसमें जग-हंसाई ना हो।

घरवाली समझाती है- महीने में जो भी कमाते हो, भाई-बहन को खिलाने-पिलाने और मां-बाप को सौंप देते हो। यदि उसी धन को जमा करते रहो तो मैं सिर से पैर तक सोने के गहनों से लद जाऊँ। तुम्हें क्या पता नहीं बाप-बड़ा ना भइया, सबसे बड़ा रूपइया।

रास्ते पर चलता हुआ भिखारी समझाता है-साहब अब 1 रूपये में क्या मिलता है। कम से कम 5 रूपये मिलने चाहिए। अब आप ही बतायें आजकल 1 रूपये में क्या मिलता है।

बात यह है कि इस बारे में जितना लिखा जाये कम ही है। अब तो आपलोग भी समझ गये होंगे कि यह भी लिखकर उपदेश ही दे रहा है। इसलिए मैं उपदेश न देकर उपदेशों को सुनना पसंद करूंगा।

Wednesday, January 28, 2009

पीकर मदहोशी के चलते सूझी उनको समाजसेवा

पीकर मदहोशी के चलते सूझी उनको समाजसेवा
सभ्य सभी को कर देंगे सौगंध उन्हें तेरी देवा

तू राम है वो हैं रामबीर, कलयुग की सेना कहलाती
वैसे भी अमन है जहाँ-तहां, है कहर वंही पर बरसाती

तूने सीता को त्यागा था एक आम पुरूष के कहने पर
वो उसी रह पर चलते हैं कुछ नेताओं के कहने पर

जिस तरह आपके लव कुश थे लड़की का कोई नाम नही
ये लोग भी वही सोचतें हैं महिला का कोई काम नही

ये पूजा करते देवी की जो मन्दिर में बैठी होती
उस महिला पर ये जुल्म करे जो घर - घर कम होती रहती

संस्कृति सभ्यता संस्कार उनके ये अस्त्र कहते हैं
उन अश्त्रो-शस्त्रों को लेकर महिला पर जुल्म वो ढाते हैं

ख़ुद जींस पैंट में घूम रहे सभ्यता का पाठ पढायेंगे
ख़ुद फिल्मी गीत गा रहे हैं औरों को भजन सुनायेंगे

'शिशु' कहें वो वीर नही कायर जो स्त्री पर अत्याचार करें
यदि वीर कहाते अपने को शरहद पर जाकर वार करें।

Tuesday, January 27, 2009

बदलते रिश्ते और बदलती परिभाषाएं

बद्ज़ातों की इस दुनिया में इंसानों की औक़ात कहां।
पहले जो रिश्ते बनते थे, अब उनमें वैसी बात कहां।।


पहले मम्मी थीं माता जी अब बापू डैडी कहलाते।
आंटी और अंकल जो अब हैं चाचा-चाची थे कहलाते।।


पहले का चंदामामा अब बच्चों के काम न आयेगा।
वैज्ञानिक करते हैं रिसर्च, रहने के काम में आयेगा।।


पहले थे केवल ही गरीब, अब परिभाषा उनकी बदली।
गांवों में अब कुछ ही गरीब, शहरों में दिखते हैं असली।।


रूपये की हालत अब पतली, तब पतली दाल हुआ करती।
अब उस रूपये में मिलता क्या? जिसमें तब दाल मिला करती।।


पहले था प्यार इशारों में, जो पकड़े गये तो हंगामा।
अब होता खुल्लम-खुल्ला है, ना होता कोई हंगामा।।


पहले की चिट्ठी प्यारी थी, उसमें था गहरा प्यार छुपा।
यदि प्रेम पत्र होता कोई पढ़ता हर कोई छुपा-छुपा।।


अब मेल का नया ज़माना है, चैटिंग करते खुल्लम-खुल्ला,
जीमेल का नया जमाना है, एसएमएस करे खुल्लम-खुल्ला।।


पहले तो गांव की गोरी को शहरों के लड़के प्यार करें।
अब शहरी लड़की को देखो? गांवों के लड़के प्यार करें।।


पहले तो 'शिशु' अकेला था, तब लिखने की हसरते नहीं।।
अब लिखने का मन करता है तो देखो उस पर समय नहीं।।

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