रस्म एक टोटका है जबकि,
रिवाज में अंधविश्वास की बू आती है।
और धर्म इन दोनों की रक्षक,
वो इन्हें एक साथ आगे बढ़ाती है।।
रस्म और रिवाज़ का विरोध
कोई क्यों नहीं करता है?
क्योंकि व्यक्ति 'आस्था' और
'धर्म' से बहुत डरता है।।
ढोंगी-पाखण्डी इन रस्मों और
रिवाजों के रखवाले हैं।
आस्तिक इनके गुलाम और
'नास्तिक' प्रश्न करने वाले हैं।।