गाँव का होकर, गाँव की नहीं,
किसी बिरवे की छाँव की नहीं,
धूल और नंगे पाँव की नहीं,
नदी, तालाब, नाव की नहीं!
फ़िर किसकी बात लिखूँ 'शिशु'!!
बकरी, भैंस, गइया की नहीं,
चरवाहे भैया कन्हैया की नहीं,
स्वरचित गीत गवैया की नहीं,
छंद, चौपाई, सवैया की नहीं!
फ़िर किसकी बात लिखूँ 'शिशु'!!
मुसीबत के मारे इंसान की नहीं,
खेत, खलिहान, किसान की नहीं,
लोन, तेल, आटा-पिसान की नहीं,
अपनों के चोट के निशान की नहीं!
फ़िर किसकी बात लिखूँ 'शिशु'!!
छप्पर, बिस्तर , खाट की नहीं,
दरवाजे पर टंगे, टाट की नहीं,
अपनों से मिली डाँट की नहीं,
गाँव के मेला, हाट की नहीं !
फ़िर किसकी बात लिखूँ 'शिशु'!!
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