Saturday, June 11, 2016

हसरते लखनऊ, दिल में बसी दिल्ली है,

हसरते लखनऊ, दिल में बसी दिल्ली है,
हरदोई रग-रग में भीतर तक समाया है।
सुनते हैं कुरसथ तो होठ खिल जाते हैं,
नागपुर तन-मन में उतना ही भाया है।।
ताम-झाम दूर रहे 'भावना' ये रहती है,
मेहनत से काम करूँ! नाम कुछ कमाया है।
क्षमता है सीखने की ललक अभी बाकी है,
'शिशु' 'हार्दिक' उसकी की छत्र-छाया है।।

सुना है अगले साल चुनाव है!

सुना है अगले साल चुनाव है!
न दौलत न शोहरत न कोई पेंच-दांव है,
उसके पास टूटी पतवार एक छोटी नाव है...
सुना है अगले साल चुनाव है!
न जाति, न धर्म, न कोई हथकंडा है,
बंदूक, अरे उसके पास न न कोई छड़ी-डंडा है,
न ही किसी बड़े दल का कोई झंडा है,
'शिशु' सा है न कोई बनाव है।
सुना है अगले साल चुनाव है!
न खाऊंगा न खाने दूंगा की लय-ताल है,
न ही वो करता कोई हड़ताल है,
और तो और न किसी ऐरे-गैर का कोई दलाल है,
बस चुनाव लड़ने का एक ताव है।
सुना है अगले साल चुनाव है।
जीतेगा नहीं ये हर कोई बोलता है,
उसे पैसे से छोड़ो...
तराज़ू-बाँट से कोई नहीं तौलता है,
ऊपर से देखकर और खौलता है,
क्योंकि उसका नहीं कोई भाव है।
सुना है अगले साल चुनाव है।
सुना है अगले साल चुनाव है!
न दौलत न शोहरत न कोई पेंच-दांव है,
उसके पास टूटी पतवार एक छोटी नाव है...
सुना है अगले साल चुनाव है!

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