Thursday, March 5, 2009

छोटे अकडू जो दल सारे उनको कोई फिक्र नहीं

चोर-चोर मौसेरे भाई अब अच्छे हो गए
कितना झूठ बोलते थे वे अब सच्छे हो गए

गुंडे और मवाली जो थे संरक्षक बन गए
सपा से पिछले प्रत्याशी बसपा में चले गए

नारे बदले नीति भी बदली वादों की फुलझडी लगी
कब्र में पांव लटकाए बैठे पर चुनाव की लगन लगी

मंदिर मुद्दा फिर गर्माया यह बोलीं माया
केंद्र में जो कांग्रेसी हैं उनका काम नहीं भाया

कहे भाजपा और दुबारा दलित हमारे साथी हैं
कुछ न किया है बसपा ने केवल उनको भरमाती है

पूंजीपति का करें समर्थन कामरेड हैं कहलाते
इससे उसमे शामिल होकर जनता को हैं भरमाते

छोटे अकडू जो दल सारे उनको कोई फिक्र नहीं
बाहर से ही करें समर्थन पद मिलता निश्चित कोई

'शिशु' कहें देखो चुनाव में मिला दोस्त दुश्मन का मन
पिता पुत्र और भाई - भाई आपस में बन गए दुश्मन

असली न लोग रंग किसको लगाऊं मै.....

रंग भी न असली है ढंग भी न असली है,
असली न लोग रंग किसको लगाऊं मै!
रंग किसको लगाऊं मै!

प्यार है दिखावा ही प्रेमिका न अपनी है,
अपनी न भाभी कोई सारी ही मैडम हैं !
रंग किसको लगाऊं मै!

भीड़-भाड़ इतनी है मेला हाट जितनी है,
कौन कौन अपनों है कुछ न समझ आवे है!
रंग किसको लगाऊं मै!

इंग्लिश ही मिलती है देशी का नाम नहीं,
और हम जैसे लोंगन का यंहा कोई काम नहीं !
रंग किसको लगाऊं मै!

'शिशु' कहें पीने पिलाने का दौर यंहा कन्हा,
जितना मज़ा गाँव में है उतना और कन्हा
रंग किसको लगाऊं मै!

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