Thursday, March 5, 2009

असली न लोग रंग किसको लगाऊं मै.....

रंग भी न असली है ढंग भी न असली है,
असली न लोग रंग किसको लगाऊं मै!
रंग किसको लगाऊं मै!

प्यार है दिखावा ही प्रेमिका न अपनी है,
अपनी न भाभी कोई सारी ही मैडम हैं !
रंग किसको लगाऊं मै!

भीड़-भाड़ इतनी है मेला हाट जितनी है,
कौन कौन अपनों है कुछ न समझ आवे है!
रंग किसको लगाऊं मै!

इंग्लिश ही मिलती है देशी का नाम नहीं,
और हम जैसे लोंगन का यंहा कोई काम नहीं !
रंग किसको लगाऊं मै!

'शिशु' कहें पीने पिलाने का दौर यंहा कन्हा,
जितना मज़ा गाँव में है उतना और कन्हा
रंग किसको लगाऊं मै!

1 comment:

मुंहफट said...

शिशुपाल जी चिंता किस बात की..
देवर भाभी को करे तंग
मुंह लागे बतासे फागुन के.
पिचकारी मारे अंग-अंग
मुंह लगे बतासे फागुन के.
सीवानों में भी ताक-झांक
गेहूं-सरसों की लड़ी आंख,
चौखट-चौबारे बजे चंग
मुंह लगे बतासे फागुन के.

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