Thursday, December 18, 2008

आम आदमी - एक कटु परिभाषा

सामान्यतः आम आदमी खाने-पीने, बच्चे पैदा करने और सोने की मूल प्रक्रिया में ही अपना सारा जीवन बिताते हैं। सामान्य लोग शक्ति के शोषण, करोबारी मामलों, धोखेबाजी और जालसाजी से इन प्रक्रियाओं की समतल धारा को सुनिश्चित करता है। सामान्य लोग पौष्टिक भोजन खा खा कर दूसरों के प्रति निर्दयी और निष्ठुर होते हुए धार्मिक विनम्रता में जीवन बिताते हैं।

आमलोग मंगल या शनिवार को मांस नहीं खाते और मंगल एवं शनिवार को मंदिर जाते हैं ताकि भगवान के सामने अपने कटु और पापी जीवन का रोना रोयें। और भगवान से क्षमा याचना कर सकें। आमतौर पर ये लोग व्रत रखते हैं। तांत्रिक या गुरू से पाप दूर करने के लिए शिक्षा लेते। प्रसाद बांटते। जबकि यही लोग लगातार उन लोगों के शरीर पर अत्याधिक काम का बोझ डालते और उनका खून चूसते जो सामान्य जीवन की पुष्टि और समृद्धि के लिए काम कर रहे होते हैं। सामान्य लोगों के पास पूर्वाग्रहों और अंधविश्वासों का अपना एक छोटा मगर पवित्र भंडार रहता है। आत्मरक्षा की इस समस्त सामग्री को भगवान और शैतान सारहीन विश्वास तथा मानव बुद्धि के प्रति कुंठित अविश्वास से जोड़ देते हैं।

दूसरी बात यह जो लोग देखने में भोलेनाथ लगते हैं उनका यह भोलापन ढोंग हो सकता है। जो उनकी बुद्धि के लिए परदे का काम करती है जिससे वे स्वयं सामान्य लोग जीवन में काम लेते हैं।

(यह कटु परिभाषा गोर्की के निबंध ‘लेखनकला और रचना कौशल’ से ली गयी है)

इस लेख से यदि किसी व्यक्ति की धार्मिक या व्यक्तिगत प्रतिष्ठा को ठेंस लगाती है तो लेखक उसका जिम्मेदार नही है।

Wednesday, December 17, 2008

अब दिल्ली ‘रानी दिल्ली’ बनेगी!

दिल्ली को विश्वस्तरीय नगर बनाने का सिलसिला जारी है। कल दैनिक जागरण के ऑनलाइन न्यूज पेपर में एक अहम बात और पढ़ने को मिली कि इस साल में दिल्ली चमकेगी। सुनने वालों को यह बात बहुत अच्छी लगेगी। इस साल दिल्ली सरकार का नगरीय प्रशासन नए साल से सार्वजनिक स्थलों पर गंदगी व पेशाब करने वालों के खिलाफ कार्यवाई का मन बना रहा है। मतलब साफ है कि अब दिल्ली में गरीबों को इससे भी वंचित रहना पड़ सकता है, क्योंकि पहले ही सार्वजनिक शौचालयों की कमी है और यदि कहीं पर हैं तो वे पॉश इलाके की कॉलोनिया तथा मंहगे मार्केट के नजदीक हैं। सुनने में यह बात भले ही हास्यास्पद लगे लेकिन है सौ प्रतिशत सच।

इस
साफ सफाई का कारण दिल्ली सरकार के पास एक है और वह है 2010 में आयोजित होने वाले राष्ट्रमण्डल खेल। खेल शुरू होने से पहले दिल्ली सरकार दिल्ली को रानी बनाने पर आमादा है। इसके लिए अब तक कई चरणों में गरीब और गरीबी हटाने के अभियान चलाये जा चुके हैं। इस सदी की शुरूआत में शहर के साढ़े तीन हजार छोटे-मोटे कुटिर उद्योगों को बन्द कर दिया गया। व्यापक विरोध और हिंसक झड़पों के बावजूद कहीं उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई। होती भी कैसे? अदालत ने ही तो आदेश दिये थे कि ये सारे उद्योग देश की राजधानी से बाहर ले जाये जाएं। सुनने में तो यहां तक आया कि दिल्ली में होने वाले राष्ट्रमण्डल खेलों व सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को ध्यान में रखते हुए नए साल से शहर को स्वच्छ बनाने हेतु गंदगी निरोधी कानून भी बन गया है और जिसे लागू करने के लिए कड़े इंतजाम किए जा रहा है।

अब तक दिल्ली को सुन्दर बनाने के अभियान में झुग्गी-झोपड़ियों को उजाड़ने के कई दौर चले हैं। एक-एक कर के यमुना के किनारे (इसे दिल्ली की भाषा में यमुना पुश्ता कहते हैं) बसी तमाम झुग्गी बस्तियां बुलडोजर के तले आ गयीं। लाखो-लाख परिवार उजड़े, टूटे। लेकिन ये शहरी गरीब लोग भी कम ढीठ नहीं एक आशियाना टूटा दूसरा फिर बना लिया। और बनाये भी क्यों नहीं रोजी-रोटी का सवाल जो है। अभी तक दिल्ली को सुन्दर बनाने में केवल शहरी गरीब ही आडे आ रहे थे लेकिन अब दिल्ली की सुन्दरता की गाज गिरी है सड़क के किनारे या पहले से कूड़े के ठेर पर पेशाब करने वालों पर।

अबसे गंदगी करने वालों से तत्काल 50 रूपये का जुर्माना वसूला जायेगा। शुक्र है कि रेलवे की तरह ‘500 रूपये जुर्माना और 6 महीने की कैद‘ वाला कानून लागू नहीं हुआ, नहीं तो क्या गरीब और क्या अमीर मतलब अच्छे-अच्छों को यह सुनकर इस सर्दी में पसीना आ जाता।

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