आदाब अर्ज़ है!
राष्ट्रमंडल खेलों पर शीला दीक्षित का हालिया बयान-
खेल में मंहगाई झेलना आपका फ़र्ज़ है!
आदाब अर्ज़ है!
विपक्ष की पार्टी भाजपा का कांग्रेस पर प्रहार-
कांग्रेस के शासन में देश पर बढ़ रहा क़र्ज़ है.
आदाब अर्ज़ है!
मंहगाई मुद्दे पर कांग्रेस की स्थित-
ज्यों-ज्यों किया इलाज़ त्यों-त्यों बढ़ा मर्ज़ है.
आदाब अर्ज़ है!
राष्ट्रमंडल खेलों पर आम-जनता-
खेल हों या ना हों हमें नहीं गर्ज़ है.
आदाब अर्ज़ है!
राजनीति और राजनेताओं पर 'नज़र-नज़र का फेर'-
राजनीति है अच्छी बात पर नेताओं से हर्ज़ है.
आदाब अर्ज़ है!
Friday, July 2, 2010
Thursday, July 1, 2010
एक बात ही अब समान है 'शिशु' कड़वा सच बतलाता
अब बदला समाज और बदले सारे रीति-रिवाज,
जाति प्रथा भी बदल गयी अब गाँव हमारे आज,
पहले गाँव हमारे थे सब जाति-समाज के टोला,
'चमरौधा' के प्रमुख व्यक्ति थे गयादीन और भोला,
बहुत एकता थी 'अरखाने' में 'आरख' थे रहते,
पर 'पठकाने' के 'पाठक' के कष्टों को थे सहते,
छत्तीस बुद्धि 'नाई' होते, 'नौवा टोला' था मशहूर,
उसके पास था 'मालिन टोला', कुर्मी टोला न था दूर,
गाँव किनारे अंतिम छोर पे रहते थे फिर सभी 'कुम्हार',
'केवट' और 'कहार जाति' के घर थे नदी किनारे पार
अब जब संख्या बढ़ गयी इतनी 'ठाकुर', 'धोबी' रहते पास,
कहते हैं परधान गाँव के अब सब आम न कोई ख़ास
पहले शादी के खाने में पंडित जी पहले थे खाते,
सिस्टम बफर लग गया जबसे गयादीन पंडित संग खाते.
पहले ब्राम्हण दीखता जो भी उसके चरण छुए जाते,
अब भोले और गयादीन जी जय-जय भीम बोल आते,
पंडित जी पहले बच्चों का नाम करण थे करते,
अब हर कोई खुद अपनों के खुद ही नाम रखा करते.
पहले छुआ-छूत था इतना 'मेहतर' यदि दिख जाता
गाली खाता 'सूबेदार' की उस रस्ते से फिर ना आता
अब सफाई-कर्मी में पिछड़ी-अगड़ी सभी जाति के लोग
मिला सभी को समान अवसर कहते 'चमरौधा' के लोग
एक बात ही अब समान है 'शिशु' कड़वा सच बतलाता
गरीब अब भी गरीब ही है मुझे समझ ये ही आता
जाति प्रथा भी बदल गयी अब गाँव हमारे आज,
पहले गाँव हमारे थे सब जाति-समाज के टोला,
'चमरौधा' के प्रमुख व्यक्ति थे गयादीन और भोला,
बहुत एकता थी 'अरखाने' में 'आरख' थे रहते,
पर 'पठकाने' के 'पाठक' के कष्टों को थे सहते,
छत्तीस बुद्धि 'नाई' होते, 'नौवा टोला' था मशहूर,
उसके पास था 'मालिन टोला', कुर्मी टोला न था दूर,
गाँव किनारे अंतिम छोर पे रहते थे फिर सभी 'कुम्हार',
'केवट' और 'कहार जाति' के घर थे नदी किनारे पार
अब जब संख्या बढ़ गयी इतनी 'ठाकुर', 'धोबी' रहते पास,
कहते हैं परधान गाँव के अब सब आम न कोई ख़ास
पहले शादी के खाने में पंडित जी पहले थे खाते,
सिस्टम बफर लग गया जबसे गयादीन पंडित संग खाते.
पहले ब्राम्हण दीखता जो भी उसके चरण छुए जाते,
अब भोले और गयादीन जी जय-जय भीम बोल आते,
पंडित जी पहले बच्चों का नाम करण थे करते,
अब हर कोई खुद अपनों के खुद ही नाम रखा करते.
पहले छुआ-छूत था इतना 'मेहतर' यदि दिख जाता
गाली खाता 'सूबेदार' की उस रस्ते से फिर ना आता
अब सफाई-कर्मी में पिछड़ी-अगड़ी सभी जाति के लोग
मिला सभी को समान अवसर कहते 'चमरौधा' के लोग
एक बात ही अब समान है 'शिशु' कड़वा सच बतलाता
गरीब अब भी गरीब ही है मुझे समझ ये ही आता
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