आजकल कितने ही नए ग़ज़लकार, गीतकार और कहानीकार आ गए हैं। वे लिख रहे हैं, दूसरों का पढ़ रहे हैं और अपनी प्रतिक्रिया भी दे रहे हैं। इन सबमें कुछ ऐसे हैं जो अपनी खीज निकालने के लिए कई बार उपहासिक प्रतिक्रिया देते हैं और अलोचनात्कम हो जाते हैं, ये भी अच्छी बात ही है, क्योंकि ये भी एक विधा है। कुछ लोग इसी बहाने इसमें भी पारंगत हो रहे हैं। बहुतायत लोग ऐसे भी हैं जो कैसा भी लिखा हो बहुत खूब, बहुत खूब लिखकर नए लेखक का हौसला बढ़ाते हैं। इन नए लेखकों के आ जाने से हिंदी साहित्य के विभिन युगों की तरह देखा जाना चाहिए। हिंदी साहित्य का इतिहास काल विभाजन में 4 काल (वीरगाथाकाल, भक्तिकाल,
रीतिकाल और आधुनिक काल) के बाद अब एक नवीन काल आ गया है। नाम बाद में सोच लिया जाएगा।
यदि यह मान लेते हैं कि हम आधुनिक काल की आधुनिकता में प्रवेश कर गए हैं तब इस काल को 4 कालों में विभाजित कर सकते हैं। जैसे इस समय कुछ लोग सरकार की भक्ति में लीन हैं इसे भक्तिकाल के लेखन से जोड़कर देख सकते हैं। ज़्यादातर नवोदित लेखक और लेखिकाएं वीर रस में लिख रहे हैं। बस एक फ़र्क़ है पुराने समय जहाँ खड्ग का प्रयोग होता था अब वे बम, एटम बम आदि का जिक्र करते हैं। श्रृंगार रस का कहना ही कहा, लड़कों से ज्यादा लड़कियां इस रस में सराबोर हैं। उन गीतों में तब नारी के शरीर के वर्णन को उपमा देकर व्यक्त किया जाता था जबकि अब उसमें अश्लीलता और अंतरंग को दर्शाया जाने लगा है। कई ऐसे नवोदित कवियों को पढ़ा जा सकता है जो इतने क़ाबिल हैं गीतों द्वारा कामुकता उत्पन्न कर देते हैं। कुल मिलाकर हम स्वर्णिम समय में जी रहे हैं। साहित्य का यह चर्मोत्कर्ष है।
अब, यदि आज सोशल मीडिया का दौर नहीं होता तो हम जैसे कितने ही नौशिखिए पहले समय की तरह गुमनामी में खो गए होते। कितना ही साहित्य कूड़े के ढेर में तब्दील हो गया होता। हमें इस सबके लिए इस अभिव्यक्ति के इस माध्यम का सम्मान करना चाहिए। हालाँकि पत्रिकाओं में लेख छपवाना और किताब छपवाना पहले की तरह अभी भी कठिन ही है। क्योंकि सिफ़ारिश और चापलूसी अपना कार्य वैसे ही कर रही है। लेकिन एक बात तय है अब वह दौर बीत गया जब नए लेखकों को कोई घास नहीं डालता था, अब नामी गिरामी और बड़े लेखक, कवि भी नए लेखकों में संभावना को देखते हैं। साहित्य का सृजन हो रहा, साहित्य अमर है और अमर रहेगा।