दो भाई
किसी गाँव में दो भाई रहते थे। गाँव में उनको कोई असली नाम से नहीं जनता था। ज़्यादातर लोग बड़े भाई को बड़े बाबा और छोटे भाई को छोटे बाबा कहते थे। बाबा इसलिए कि, उन दोनों भाइयों की उम्र गांव में बाबा की उम्र जैसे दिखने वाले बुजुर्ग व्यक्तियों से भी ज़्यादा थी। अधेड़ से अधेड़ और बुजुर्ग उम्र का व्यक्ति भी उनको बाबा कहता था।
दोनों भाई एक बहुत बड़े लेकिन कच्चे मकान में एक ही साथ रहते थे। वे कभी अलग-अलग खाना बनाते और कभी एक साथ। बड़े भाई छोटे भाई की तुलना में काफ़ी सीधे, सरल और मृदुभाषी थे। ऐसा कहा जाता था कि दोनों भाई अविवाहित थे। हालांकि उन्हें जवान अवस्था में कम ही लोगों ने देखा था इसलिए लोग अंदाजा लगाकर कहते थे कि बड़े भाई छोटे से काफी ज्यादा खूबसूरत रहे होंगे। अगर गोरा रंग सुंदरता का पर्याय है तो यकीन मानिए इस पैमाने के अनुसार दोनों भाई खूबसूरत ही रहे होंगे, दोनों भाइयों की उम्र का अंदाजा लगाना मुश्किल था। दोनों के बाल सनई की तरह बिल्कुल सफ़ेद थे, इसलिए उन दोनों की उम्र के बीच में फासला करना मुश्किल था।
उनके पास आजीविका के लिए काफ़ी खेती थी। इसके अलावा बाग़ और तालाब भी थे। उनको ये सब विरासत में मिला था। हालाँकि गांव के किसी निवासी ने उनको खेती करते नहीं देखा था। वो अपनी खेती बटाई करवाते थे, जिससे उनको इतना अनाज मिलता था कि खाने के अलावा रोजमर्रा के ख़र्च का भी जुगाड़ हो जाता था।
उन दोनों भाइयों के पहनावे में कोई ख़ास अंतर नहीं था। छोटे भाई धोती और आधी बाँह का कुर्ता पहनते थे और बड़े भाई भी धोती के ऊपर आधी बांह का कुर्ता पहनते थे। दोनों की लंबाई में इतना बड़ा फर्क था कि छोटे भाई बड़े भाई के कंधे तक पहुंचते थे।, लेकिन व्यवहार और भाषा से छोटे भाई बड़े से दो हाँथ ऊपर थे। उनके मुँह खोलते ही गाली निकलती थी।
छोटे भाई बटाई खेत करने वालों को नाम से नहीं बल्कि जातिगत उपनाम से बुलाते थे। उन्हें देखते ही लोग खेतों में अंधाधुंध काम करने लगते और उनसे भय खाते और वापस जाते ही बटिहिया उनका मजाक उड़ाते। जबकि बड़े भाई मदुभाषी और लोगों को नाम से बुलाते थे तथा अनाज के बंटवारे के समय अपने हिस्से के अनाज से भी कुछ हिस्सा बटाई करने वालों को दे देते थे। दोनों भाइयों का अभी तक बंटवारा नहीं हुआ था।
दोनों बुजुर्गों का एक दूसरे के अलावा और कोई न था। बड़े भाई का ज्यादातर समय घर पर ही बीतता जबकि छोटे भाई लाठी टिकाकर गांव में बटाईदारों के घरों का चक्कर लगाकर अपने समय को काटते। उन दोनों भाइयों को किसी ने न कभी हंसते और न ही कभी रोते देखा।
उनके कुटुंब के बुजुर्ग पड़ोसी उनके घर खेत पर कब्जा करने का दिवासपन्न देखते। ताकि उनके खेत बाग़ अपने खेत बाग़ कह सकें, लेकिन वे बुजुर्ग पड़ोसी एक एक कर उम्र अधिक होने के कारण मर रहे थे। उन्हें बचपन से बुजुर्ग देखने वाले लोग भी सफ़ेदी की दहलीज पर कदम रख चुके थे।
दोनों भाई अब इस दुनियां में नहीं हैं, और यकीन से कहा जा सकता है कि नई पौध में से उन्हें कोई भी नहीं जनता। वो आज हमारी कहानी के माध्यम से फिर से जिंदा हो गए हैं।
डिस्क्लेमर: यह कहानी काल्पनिक है इसका किसी जिंदा और मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं।