बहुत पहले की बात है। हमारे गाँव की रेलवे स्टेशन के पास बने सरकारी क्वार्टर में शोहरिया गांव से आए एक व्यक्ति रहते थे। शरीर से हट्टे-कट्टे, बहुत ही अच्छा डीलडौल (पर्सनलिटी), मधुर स्वभाव, बहुत ही हँसमुख और मिलनसार इतने कि कोई भी उनसे बात करने को उत्सुक रहता था। नाम याद नहीं, लेकिन लोग उन्हें ठाकुर कहकर बुलाते थे, ठाकुर इसलिये वो जाति से (क्षत्रिय) थे। पता नहीं, कहीं से वो एक मेहरुआ (औरत) ले आये। जिसे प्यार से वो राधा कहते थे। राधा को हिंदी नहीं आती थी, और ठाकुर को उनकी मेहरुआ की भाषा। लेकिन दोनों में गहरा प्यार था। राधा ठाकुर के लिये रोटी बनाती और मेहनत मजदूरी में उनका हाथ बटाती। स्वभाव से सीधी हिंदी (प्रमुखता: गांव की भाषा) न बोल पाने के कारण बदमाश निवासी उसको पागल समझते थे। ठाकुर का कोई विशेष कार्य नहीं था। कहीं भी मजदूरी कर लेते। लोगों से कहते सुना गया था कि उनके पास काफी संपदा थी, जिसके उनके परिवार के चालबाज लोगों द्वारा हड़प लिया गया था।
ख़ैर होते करते-होते करते (कुछ दिनों के बाद) दोनों के यहाँ एक बालक ने जन्म लिया। बालक देखने में काफ़ी स्वस्थ और सुंदर दिखता था। लोगों को ताज़्जुब होता कि इनके यहां इतना सुंदर बच्चा कैसे पैदा हो सकता है। ठाकुर बच्चे को कंधे पर बिठाकर गांव में घुमाते। ठाकुर का अब राधा से प्यार धीरे-धीरे खत्म हो रहा था। गांव में उस समय तक जन्मदिन मनाने का चलन आ चुका था, इसलिए एक दिन गांव में लोगों ने मजाक-मजाक में उनसे पूछ लिया "इसका जन्मदिन कब मनाओगे". ठाकुर बोलते हम इसका जन्मदिन भादौं में मनाएंगे। लोग पूछते पैदा कब हुआ था, वो मासूमियत से जवाब देते पैदा कभी भी हुआ हो लेकिन इससे क्या फ़र्क पड़ता है।
एक दिन राधा उन दोनों को छोड़कर कहीं चली गयी। ठाकुर बहुत रोये। बच्चा भी रोने लगा, वो बेचारा इसलिए रो रहा था कि ठाकुर रो रहे थे। उसके लिए पैदा होने के बाद से ही वही माँ थे और वही बाप भी। राधा के बिना अब ठाकुर का गांव में मन नहीं लगता था। वो सड़क पर चलते चलते कुछ भी बड़बड़ाते, जैसा कि राधा के समय करते थे। लोग कहते कि ठाकुर पागल हो गए हैं। उस दिन के बाद से लेकर आजतक मैंने ठाकुर को नहीं देखा। सोचता हूँ कि बच्चा कैसा होगा? राधा कहाँ गई होगी और क्या ठाकुर अभी भी बच्चे के साथ होंगें। मेरी दुआ है वो सब जहां भी हों सलामत रहें।
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