जिला हरदोई से डाभा गाँव जाने के लिए बस के बाद ऑटो करना पड़ता है. इस गाँव के निवासी उम्दा कहानीकार के साथ ही साथ कहावतें, किदवंक्तियाँ, कही-सुनी, सुनी-सुनाई और गप्पें भी अच्छे से सूना लेते हैं. इस गांव के ज्यादातर लोग मुहावरें, लोकोक्तियाँ आदि में भी बात करते हैं, जैसे 'गोली मार दो, लेकिन बोली मत मारिओ', 'ऊँट की चोरी निहुरे निहुरे' आदि आम बोलचाल की भाषा में प्रचलित हैं. यहाँ के निवासी मृदुभाषी, मिलनसार और मेहमान को सत्कार करने वाले हैं.
इस बार इस गाँव से वापसी के समय ऑटो में ड्राइवर साहब से खूब सारी बातें करने का मौका मिला. मैं स्वयं को बातूनी समझता था लेकिन ये महाशय तो चार कदम और आगे निकले. तो हुआ ये गाँव से लौटते समय तालाब के पास एक नेवला हमारा रास्ता काट गया. उन्होंने फुर्ती से ऑटो रोका और जिधर वो भागा था उसकी तरफ भागे. मैं उन्हें उत्सुकता से देखने लगा. बाक़ी सवारियां मुझसे ज़्यादा समझदार थीं, उन्हें कोई फर्क न पड़ा. थोड़ी देर बाद वे जब चले तो मैंने कौतूहलवश पूछा, 'क्या था?' तो उन्होंने कुछ ये बयां किया:-
"नेवला सांप का दुश्मन है ये तो आप दूध का कर्ज फ़िल्म में देखकर समझ ही गए होंगे. लेकिन इसकी एक खूबी ये भी है कि ये मरे हुए साँप को दुबारा जिंदा कर देता है, इसके वो बूटी पता है, लेकिन आजतक कोई देख नहीं पाया कि वो बूटी कहाँ से लाता है, भले ही सांप के टुकड़े टुकड़े हो गए हों ये उसे जोड़ कर ज़िंदा कर देता है. एक बार इसकी बूटी पता चल जाए तो लाखों लोगों का इलाज किया जा सकता है. जब भी मैं नेवला देखता हूँ, उसकी तरह जाकर देखता हूँ कि जड़ी बूटी तो नहीं खोद रहा. क्यूँकि हमारे गाँव में जड़ी बूटियों का भंडार है, पथरी, पुरानी से पुरानी बाबासीर, कब्ज, बदहजमी, पित्त, पीलिया, बिशेखा (कुत्ते बंदर के काटने के बाद वाली बीमारी), फोड़ा फुंसी, बुखार, काली खांसी आदि के लिए सब कुछ है यहाँ. लेकिन पुराने व्यक्तियों ने जानकारी लोगों तक साझा नहीं की इस वजह से अनेकों जड़ी बूटियों का पता नहीं है, हैं लेकिन मौजूद".
उन्होंने ऐसी ऐसी बीमारियों का नाम बताया जिन्हें जानकर दांतों तले उंगली दबाना पड़ा. अब आप उन्हें कहानीकार कह सकते हैं, जानकार कह सकते हैं, या गपोड़ी, लेकिन मेरी नज़र में व्यक्ति वे शानदार रहे
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