Saturday, June 18, 2016

अरे सियासत को समझो ये सब छल है।

इतिहास की बातेँ सब किताबी बात हैं,
आज जो है हक़ीक़त में वही असल है।
घुमा-फिरा कर मत किया करो कोई बात,
बात से ही निकलता हर बात का हल है।
ये कविता, ये गीत, ये दोहे, वो तरन्नुम,
मतला ये है ये सब भी तो एक गजल है।
वो मन्दिर था ये मस्जिद है कहने दो उन्हें,
अरे सियासत को समझो ये सब छल है।
अगर मिलना है तो एक कोशिश करना 'शिशु'
बहुत सुना है ये कहते कि मिलते हम कल हैं
लिखो! जी चाहे जो लिखो पर अपना लिखो,
दूसरों के कॉपी पेस्ट को ही कहते नक़ल हैं।

Monday, June 13, 2016

‎मनकीबात‬

हमारे एक दोस्त हैं। पता नहीं! लगता है आजकल बहुत परेशान हैं या दूसरों को परेशान कर रहे हैं। ज्ञान पर ज्ञान पेले जा रहे हैं। अमूमन ज्ञान व्यक्ति दो परिस्थितियों में देता है या बहुत खुश है या बहुत दुखी। भाई की बातों से लगता है बहुत दुखी हैं और दुखी मन से अपने मन को दूसरों को ज्ञान देकर हल्का हो रहे हैं। पूछा तो बोल रहे हैं कि ‪#‎मनकीबात‬ है।
यही हाल कुछ इधर है। जबसे बीबी मायके गयी है। कुछ मेरा भी ज्ञान पेलने का मन करने लगा है। उट-पटांग शेरो शायरी लिखने लगता हूँ। शहरी भारतीयों के तरह नेताओं पर कटाक्ष कर लेता हूँ, क्यों कि मन हल्का हो जाता है। वैसे आजकल नेताओं पर कटाक्ष के लिए बैलेंस बनाना पड़ता है नहीं तो वो तुमको आप और आप को भक्त साबित कर देंगे और कटाक्ष किये गए पर ऐसा कटाक्ष करेंगे कि अपने मन को हल्का करके आपके मन को हल्का करने पर मजबूर कर देंगे।
एक दौर है आजकल, वैसे छोटे मुंह बड़ी बात होगी लेकिन कहना पड़ेगा कि आलोचना और बुराई दोनों को जबसे मिक्स कर दिया गया है तबसे परेशानियां कुछ ज्यादा ही बढ़ गयी हैं। अब किसी की आलोचना करोगे लोग उसे बुराई समझ लेंगे। हो गया मन दुखी, अब करना पडेगा हल्का। अब आलोचना शब्द विलुप्त होता जा है वैसे ही जैसे आपने बोला कि मैं आम आदमी हूँ लोग आप को आपिये समझ लेंगे और जो जोक सुनाएंगे कि आप हंसते हंसते मर जाएँ।
अब लाइक और कमेंट करके तुम लोग भी अपने अपने मन को हल्का कर लो।

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