अब तनिक भी मन यहाँ लगता नहीं है,
लग रहा निर्वाण का क्षण आ गया है।
ज़िन्दगी भर कष्ट के बोझे उठाए,
ख्वाब तक में सुख कभी देखा नहीं है।
ज्योतिषी ने बहुत पहले ही कहा था,
हाथ में सुख की कोई रेखा नहीं है।।
आंसुओं की धार झर-झर बह रही है,
चक्षुओं में लग रहा कण आ गया है।
अब तनिक भी मन यहाँ लगता नहीं है,
लग रहा निर्वाण का क्षण आ गया है।
छल, कपट, फ़रेब का साया रहा हरदम,
इसलिए फ़रेब पर भी बोल देता हूँ।
जिन सयानों को 'गुरु' समझा कभी था,
आज उनकी पोल भी मैं खोल देता हूँ!!
कुछ नहीं कहना, हमेशा खुश रहें वे,
याद मुझको स्वंय का प्रण आ गया है।
अब तनिक भी मन यहाँ लगता नहीं है,
लग रहा निर्वाण का क्षण आ गया है।
प्यार से जिनसे निभाना चाहता था-
हर मुसीबत वे हमें ही बांट देते थे।
डोर संबंधों की पकड़े मैं रहा ताउम्र,
था भरोसा जिनपे वे ही काट देते थे।।
आख़िरी है छंद, यह अंतिम विदाई,
भूल जाता हूँ! स्मरण आ गया है।
अब तनिक भी मन यहाँ लगता नहीं है,
लग रहा निर्वाण का क्षण आ गया है।