Tuesday, September 22, 2020

हलकान!


जुमले -  वादे  -  झूठों  से।
प्रजातंत्र - की - लूटों   से।।
काँटों  से  बचना  आसान,
मुश्किल लेकिन -ठूठों  से।।

छुट्टा साँड़ समझ में आता,
गाय छुटी क्यों - खूँटों  से?
हाल  बराबर  लेता  रहता,
खेतिहर अपने- रूठों  से।

निर्दयता,  बर्बरता  की  बू-
आती  क्यों  है  बूटों  से ?
एसपी साहब भी हलकान!
नए - नए - रंग - रूटों  से...

#शिशु #नज़र_नज़र_का_फ़ेर

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