Sunday, July 17, 2016

देश गर्त में चला गया फिर बाद में भाड़ को झोकोगे

गंगा, गाय है उनका मुद्दा, जिनका भ्रष्टाचार था।
अब बेकाबू बोल रहे हैं, पहले शिष्टाचार था।।
महंगाई को कोस रहे थे, पीकर महंगा पानी।
हाय हाय के नारे देकर, बोले कड़वी बानी।।
अब सत्ता में आते ही, महंगाई को भूल गए।
जाने कितने ही किसान फांसी पर हैं झूल गए।।
काला धन - काला धन, जो बोले थे जोर से।
युवा जोश में जाग गया था, बहुत सवेरे भोर से।।
सोचा था काले धन में, जो पैसा मिल जायेगा।
मिलने वाले 15 लाख से एक कोट सिल जायेगा।।
अब ट्वीटर पर गाली देते, लेखक लिखने वालों को।
बोल रहे हैं देश द्रोही हैं मारों इन सब सालों को।।
'शिशु' लगा मुँह पर ताला है लिखना कैसे रोकोगे।
देश गर्त में चला गया फिर बाद में भाड़ को झोकोगे।।

अब सत्ता में करते मौज इन्हें न हिलना पड़ता है!

ऐसे हैं हालात देश के हमको लिखना पड़ता है।

भ्रष्टाचार विरोधी आँधी अण्णा जी की आयी थी।
उसी विरोधी रैली ने ही कुछ की मौज बनायी थी।।
नेताओं के रहे विरोधी, उनकी हंसी उड़ाते थे।
लोकतंत्र में लोकपाल का सबको पाठ पढ़ाते थे।।
अब सत्ता में करते मौज इन्हें न हिलना पड़ता है।
ऐसे हैं हालात देश के हमको लिखना पड़ता है।।

आम आदमी दिल्ली वाले हरदम रोते रहते हैं।
काम न करने मोदी देते ऐसा सबसे कहते हैं।।
कहाँ कभी कहते फिरते थे लोकपाल वो लाएंगे।
भ्रष्टाचार ख़त्म होगा तब घूस न कोई खायेंगें।।
मुफ़्त की वाई-फाई खातिर उनसे मिलना पड़ता है।
ऐसे हैं हालात देश के हमको लिखना पड़ता है।।

ऐसे-ऐसे थे उपदेशक काला धन ही रटते थे।
टीवी की लंबी बहसों से पीछे कभी न हटते थे।।
योगा एक बहाना है बस, ये तो बनिया पक्के हैं।
आज देख के इनकी पूंजी हमसब हक्के-बक्के हैं।।
फटे पार्क में जो कपड़े थे उनको सिलना पड़ता है।
ऐसे हैं हालात देश के हमको लिखना पड़ता है।।

शाखा वालों ने पब्लिक को ऐसा पाठ पढ़ाया।
कांगेस के दुश्मन से फिर अपना हांथ बढ़ाया।।
कुछ ऐसा हो गया अचंभा सूरज पूरब अस्त हुआ।
भ्रष्टाचारी कांग्रेस फिर इनके आगे पस्त हुआ।
महंगाई के कीचड़ में कमल को खिलना पड़ता है।
ऐसे हैं हालात देश के हमको लिखना पड़ता है।।

अब महंगाई की बात करो तो रोना रोने लगते हैं।
खड़ी फसल में जोत दुबारा फसलें बोने लगते हैं।
बात वहीं की वहीं रही कुछ बदला हो बतलाओ जी।
कसम तुम्हें है सिया राम की झूठी कसम न खाओ जी।।
ऐसे वैसे मुद्दों में फिर 'शिशु' कोे पिलना पड़ता है।
ऐसे हैं हालात देश के हमको लिखना पड़ता है।।

अब सत्ता में करते मौज इन्हें न हिलना पड़ता है!
मुफ़्त की वाई-फाई खातिर उनसे मिलना पड़ता है!
फटे पार्क में जो कपड़े थे उनको सिलना पड़ता है!
महंगाई के कीचड़ में कमल को खिलना पड़ता है!
ऐसे वैसे मुद्दों में फिर 'शिशु' कोे पिलना पड़ता है!
ऐसे हैं हालात देश के हमको लिखना पड़ता है!!!

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