गंगा, गाय है उनका मुद्दा, जिनका भ्रष्टाचार था।
अब बेकाबू बोल रहे हैं, पहले शिष्टाचार था।।
महंगाई को कोस रहे थे, पीकर महंगा पानी।
हाय हाय के नारे देकर, बोले कड़वी बानी।।
अब सत्ता में आते ही, महंगाई को भूल गए।
जाने कितने ही किसान फांसी पर हैं झूल गए।।
काला धन - काला धन, जो बोले थे जोर से।
युवा जोश में जाग गया था, बहुत सवेरे भोर से।।
सोचा था काले धन में, जो पैसा मिल जायेगा।
मिलने वाले 15 लाख से एक कोट सिल जायेगा।।
अब ट्वीटर पर गाली देते, लेखक लिखने वालों को।
बोल रहे हैं देश द्रोही हैं मारों इन सब सालों को।।
'शिशु' लगा मुँह पर ताला है लिखना कैसे रोकोगे।
देश गर्त में चला गया फिर बाद में भाड़ को झोकोगे।।
अब बेकाबू बोल रहे हैं, पहले शिष्टाचार था।।
महंगाई को कोस रहे थे, पीकर महंगा पानी।
हाय हाय के नारे देकर, बोले कड़वी बानी।।
अब सत्ता में आते ही, महंगाई को भूल गए।
जाने कितने ही किसान फांसी पर हैं झूल गए।।
काला धन - काला धन, जो बोले थे जोर से।
युवा जोश में जाग गया था, बहुत सवेरे भोर से।।
सोचा था काले धन में, जो पैसा मिल जायेगा।
मिलने वाले 15 लाख से एक कोट सिल जायेगा।।
अब ट्वीटर पर गाली देते, लेखक लिखने वालों को।
बोल रहे हैं देश द्रोही हैं मारों इन सब सालों को।।
'शिशु' लगा मुँह पर ताला है लिखना कैसे रोकोगे।
देश गर्त में चला गया फिर बाद में भाड़ को झोकोगे।।