Saturday, August 22, 2009

तुम्हारा नाम? जी शिशु बदनाम!

यह कविता मैं अपने एक मित्र के लिए लिख रहा हूँ, जिसके साथ कुछ साल पहले दिल्ली में भाषा-प्रान्त के चलते प्राइवेट नौकरी पर नहीं रखा गया था!

तुम्हारा नाम?
जी शिशु बदनाम!
बदनाम क्यूँ ?
बदनाम क्या तुम्हारा सर नेम है?
जी बात यह है मेरा नाम और मेरे प्रदेश का नाम सेम है!
क्या आप अपने प्रदेश का नाम बताओगे?
नहीं! पहले आप वादा करें नौकरी पर लगाओगे
तुम अपने प्रदेश का नाम क्यूँ नहीं बताते हो?
जनाब आप सीधी-सीधी बात पर क्यूँ नहीं आते हो!
अच्छा यंहा क्यूँ आए, सही-सही बतलाना?
बात यह है श्रीमान गाँव में पड़ गया सूखा
इसीलिये हुआ यंहा आना!
खैर! जब तक तुम अपने प्रदेश का नाम नहीं बताओगे
तब तक तुम मेरी कंपनी में नही आपाओगे
कभी कही और से आना
और हां अपने प्रदेश का नाम भी सही-सही बतलाना
तभी बात बनेगी, तब तक मत आना?
जी पूरी बात सुनये, मुझे पूरा काम आता है!
अबे अब जा यहाँ से, खाली-पीली भेजा क्यूँ खाता है?

धुन का पक्का घुन होता है चट कर जाता गेहूं

धुन का पक्का घुन होता है चट कर जाता गेहूं
इसी तरह एक मछली होती जिसको कहते रोहू
जिसको कहते रोहू, हाँ कुछ व्यक्ति भी ऐसे होते
जो बसे-बसाए अपने घर को धारा बीच डुबोते
क्या 'शिशु' आपसे तो लिखने में हद हो जाती
घुन और आदमी की क्या कभी तुलना की जाती

गेहूं के संग घुन पिस जाता, बड़े बुजुर्ग बताते
इसीलिये रखते जब गेहूं पाउडर खूब मिलाते
पाउडर खूब मिलाते ताकि गेहूं बच जाए
और लोग उसको अधिक समय तक खाएं
'शिशु' कहें काश लोगों की नौकरी के साथ भी ऐसा होता
अधिक दिनों तक करते काम और संस्था का लाभ भी होता

Friday, August 21, 2009

देल्ली का ट्रैफिक

जाम लगा क्यूं सड़क पर किस कारण भाई
ट्रैफिक पुलिश ले रहा खड़ा-खड़ा अंगड़ाई
खड़ा-खड़ा अंगड़ाई पीछे से एक ऑटो को रोका
बैठ के ऑटो बीच लिया एक नीद का झोंका
'शिशु' कहें वो बेचारा भी क्या-क्या करता
१२ घंटे डयूटी करके वो क्या कम थकता

रेड लाइट पर जाम क्यूं इतना बढ़ जाता
साहेब जी गाडी में बैठे उनको समझ न आता
उनको समझ न आता झांक कर बाहर देखा
देखा कटवारिया से बेर सराए तक लम्बी रेखा
'शिशु' कहें दिल्ली में है जाम एक आम बात
रेड लाइट मुनिरका में जाम लगता दिन-रात

सबसे ख़तरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना

मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नही होती*
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नही होती
गद्दारी-लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नही होती

बैठे-बिठाये पकड़े जाना-बुरा तो है
सहमी सी चुप में जकड़े जाना-बुरा तो है
सबसे ख़तरनाक नही होता

कपट के शोर में -
सही होते हुए भी दब जाना-बुरा तो है
किसी जुगनू के लौ में पढ़ना-बुरा तो है
मुट्ठियाँ भींचकर वक्त निकाल देना-बुरा तो है
सबसे ख़तरनाक नही होता

सबसे ख़तरनाक होता है-
मुर्दा शान्ति से मर जाना
न होना तड़प का, सब सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौट कर घर आना
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना

*यह कविता विश्व विख्यात कवि श्री अवतार सिंह संधू 'पाश' (जिनकी खालिस्तान के उग्रवादियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी) के कविता संग्रह से ली गयी है!

Thursday, August 20, 2009

गाँव छोड़ गए गुड्डू राना अब फिल्मो में आयेंगे

गाँव छोड़ गए गुड्डू राना अब फिल्मो में आयेंगे
अपने साथ नाम गाँव का वो रोशन करवाएंगे

चार दिनों से अखबारों में गुड्डू राना ही आते
आज फ़ोन से पता चला है चाचा जी हैं फरमाते

गाँव-पड़ोस ख़बर है फ़ैली सुनकर खुशी मनाते लोग
कौन बनेगी हीरोईन अब यही दिमाग लगाते लोग

दुश्मन सब गुड्डू राना के झूठी ख़बर जानते हैं
धारावाहिक में आएगा केवल यही मानते हैं

दोस्त सभी गुड्डू राना के फूले नही समाते हैं
सुबह शाम या रात कभी हो जमकर खुशी मनाते हैं

'शिशु-भावना' ने भी आज पोस्ट कार्ड में लिख डाला
लिखा गाँव आकर गुड्डू तुमको पहनाएंगे माला

Wednesday, August 19, 2009

धनीराम कुछ भी कहता हो सत्य मार्ग ही चुनना

मैं ही घर में, मैं ही बाहर,
मेरा ही रुतबा चलता है
राह में रोड़ा जो अटकाता
उस पर तब कोडा चलता है

बोल रहा है धनीराम ये
धंधा मैंने ही फैलाया
मत भूलो तुम सब नौकर हो
पैसा मेरे ही है लाया

काम करोगे मन से मेरे
तब तनख्वाह बढ़ाऊंगा
नही समझ लो तुम सबको
मैं घर से अभी भगाऊंगा

एक बात तुम गांठ बाँध लो
मुझसे पार न पाओगे
कहीं भूल से खोल दिया मुंह
औंधे मुंह गिर जाओगे

हाथी कितना ही बूढा हो
भैंस बराबर रहता है
ऐसा मैंने नही कहा है
जग सारा ये कहता है

'शिशु' कहें लेकिन तुम यारों
अपने दिल की तुम सुनना
धनीराम कुछ भी कहता हो
सत्य मार्ग ही चुनना

सच कड़वा या जानलेवा !!

'सच का सामना' अब
जानलेवा साबित हो रहा है
कम से कम अखबारों में तो
यही लिखा आ रहा है
बात सही है!
पर ऐसा मै नहीं मानता हूँ,
सच कड़वा होता है
मै तो बस यही जानता हूँ,
फिर मजबूर हो जाता हूँ
कि अखबार सही कह रहे हैं
क्यूंकि आजकल गंगा और जमुना
एक ही सीध में बह रहे हैं।
एक चीज और जो
मुझे पता चली है कि
अखबारों में वही छपा-छपाया आता है
जो कि मोटी रकम देकर
लिखवाया जाता है
बुद्धिजीवी कहते हैं
ऐसा इसलिए लिखवाया जाता है
ताकि प्रोग्राम पापुलर करके
जनता को भरमाया जाता है
पर 'शिशु' आपको
इससे क्या फर्क पड़ता है?
आपतो गधे के साथ जड़ हो
आपकी बुद्धि में भी जड़ता है

Monday, August 17, 2009

इंतज़ार है शत्रु उस पर कर न यकीन....

इंतज़ार है पक्का शत्रु, उस पर कर न यकीन
जीना शान से चाह रहे तो ख़ुद को समझ न दीन
ख़ुद को समझ न दीन काम कल पर ना छोड़ो
लगन से करके काम दाम फल समझ के तोड़ो
इंतज़ार का फल मीठा है ऐसा कहते लोग
इंतज़ार कब तक करें ? क्या जब बढ़ जाए रोग
जब बढ़ जाता रोग तब इलाज़ महंगा हो जाता
इंतज़ार जो करवाता है तब उसके समझ में आता
'शिशु' कहें दोस्तों मेहनत से मत घबराना
इंतज़ार है शत्रु उसे तुम पास न लाना

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