याद आएंगें जब भी बुद्ध,
तब आयेंगें याद अशोक।
हत्या महिमा मण्डित होगी,
तब तब होगा गाँधी शोक।।
जब हिंसा पर बजीं तालियाँ,
तब तब होगा कत्लेआम।
जब खादी पर लाँछन आया,
तब समझें जनता नाकाम।।
बदहाली में जब किसान हों,
तब शासन से आशा क्या?
जाकर पूछो मजदूरों से,
होती घोर निराशा क्या?
जरा सोचिए गौरतलब है,
देश का होगा कब उद्धार?
जागो, बदलो, भाग्य स्वयं के,
कब तक खाते रहोगे हार!!
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