लोकतंत्र में एक तरफ धन की होती बर्बादी है,
वहीं दूसरी तरफ आधी भूखी सोती आबादी है,
चयनित प्रत्याशी का जहाँ, मोल लगाया जाता है,
न्यायालय को सरेआम, पाखंड बताया जाता है,
जहाँ मिलावट रहित देश में दुर्लभ यारों खादी* है,
लूट मची हो खुलेआम, हर तरफ दिखे बर्बादी है,
और जहाँ पर संविधान की प्रतिदिन होती हत्या है!
वहाँ हमारा लिखना-पढ़ना समझ लीजिये मिथ्या है।
*नेताजी
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