माझी मुझको मिला दीजिए बहती धारों से।
अब कोई भी मोह बचा ना मुझे किनारों से।।
देख लिया है जबसे तुमको,
बाकी कुछ भी बचा नहीं।
एक तुम्हारे सिवा दूसरा,
मुझको कोई जंचा नहीं।
अब ना शिक़वा नहीं शिकायत नज़र-नज़ारों से।
माझी मुझको मिला दीजिए बहती धारों से....
अब कोई भी मोह बचा ना मुझे किनारों से...
जिसको मन से चाहा मैंने,
उसका कुछ भी पता नहीं।
बाट देखती मंडप में थी
बोली उसकी खता नहीं।
अड़ी हुई है डोली, उठ ना रही महारों से।
माझी मुझको मिला दीजिए बहती धारों से...
अब कोई भी मोह बचा ना मुझे किनारों से...
बहुत हो गई देर अंधेरा
थककर चूर हो गया है,
चकवी से चकोर भी देखो
कितनी दूर हो गया है।
लगने लगा उसे फिर से डर चाँद सितारों से!
माझी मुझको मिला दीजिए बहती धारों से....
अब कोई भी मोह बचा ना मुझे किनारों से...
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