Saturday, August 29, 2009

प्रार्थना - संकट घड़ी

मुझे गधा ही रहने दो प्रभु, मैं इस पद के लायक
उन्हें बना दो गधे से घोड़ा जो है सब नालायक

उनको काम दिलादो प्रभु जी जिनको देना ब्याज
उनको भी जल्दी लगवादो जिन्हें पहनना ताज

मेरा क्या है, मैं हूँ पाजी, मुझको कुछ ना आता
खाली-पीली ऑफिस आकर केवल खाना खाता

फिर भी विनती आप से करता है ये दास
मुझे लगाना ऐसी जगह जंहा जमे विश्वास

अगर अकेला होता प्रभु जी तो करता आराम
अब माँ-बाप साथ में बीबी मुझे चाहिए काम

खान-पान, सम्मान प्रभु जी सब पैसे से आता
काम दिलादो आप 'शिशु' को आप ही सबके दाता

Thursday, August 27, 2009

ओह! किस्मत के मारे! 'शिशु' बेचारे!

दिन हो या रात की नीवरता
सपनो भरी रात हो
या सुनहरी, ताज़गी भरी प्रात हो
मेरे समूचे वजूद में बस एक ही चीज होती है
ओह! किस्मत के मारे!
'शिशु' बेचारे!
दिल के अन्दर और बाहर बस यही आवाज़ होती है
जबसे अफवाह हकीकत में बदल गयी
अब नौकरी चली गयी
विवशता तब और बढ़ जाती है
जब मेरी शारीरिक दुर्बलता नज़र आती है
अब क्या होगा!
लोग कहते हैं की दिल्ली में हजारों नौजवान
जो बीए और एम हैं, रिक्शा चला रहे हैं
वो ताकत कंहा से लाऊंगा
यह सोचकर हिसाब लगता हूँ
कि मैं गाँव चला जाऊँगा
लेकिन गाँव में क्या बताऊंगा
कि यही अगले महीने से काम नही होगा
और जाहिर सी बात है तब पास दाम भी नही होगा
अब समझ आ गया सरकारी नौकरी के लिए
इतनी हाय-तोबा क्यूँ है
कम से कम दाल रोटी खाते हुए
परिवार के जिम्मेदारियों को
भली भांति निपटाया जा सकता है
और यदि आदमी भ्रष्ट है तो
और भी अच्छा,
भ्रष्टाचार से अच्छा-खासा पैसा भी
बनाया जा सकता है
लेकिन मैंने आजतक हिम्मत नही हारी
इसीलिये छोड़ दी कई नौकरी सरकारी
कई दोंस्तों से बात चल रही है
कुछ न कुछ हो जाएगा
अब ठान लिया है 'शिशु' ने
कुछ न कुछ करके दिखलायेगा

समाज सामाजिक संबंधो का जाल है

समाज सामाजिक संबंधो का जाल है,
प्रश्न यह है?
क्या इसका किसी को मलाल है?
और दूसरी बात यह कि अब
समाज की परिभाषा भी कुछ इस तरह से हो रही
कि अमीर की गंगा बह रही है
और गरीब की यमुना बह रही है
जंहा गंगा को पवित्रता का पर्याय माना गया है
वहीं यमुना को पवित्र होते हुए भी अभिशाप माना गया है
क्यूंकि
समाज शास्त्री मानते हैं कि गरीबी अभिशाप है!
और अमीर!
अमीर की परिभाषा ही नही बनी अभी तक
इसलिए अमीर को आम आदमी कहा जाता है
इसमे गरीब और अमीर को भी साथ रखा जाता है
इसलिए आजकल यह सुना जा रहा है
आदमी संकटों से घिरा जा रहा है

Wednesday, August 26, 2009

काम तुम्हे सब कुछ आता हो ऐसा नही जरुरी

काम तुम्हे सब कुछ आता हो ऐसा नही जरुरी
पहली जगह जॉब क्यूँ छोडी क्या तेरी मजबूरी
क्या तेरी मजबूरी और तुझको क्या नया आता
हिन्दी को तू बता धता क्या बोल अंगरेजी पाता
'शिशु' कहें फिर देखा जाता है तू कितना चालू
पैसा कम लेकर काम कर सकता है क्या कल से चालू

Tuesday, August 25, 2009

फ़ोन से बात कम ही करते अब मैसेज ही आते

फ़ोन से बात कम ही करते अब मैसेज ही आते
फ्री SMS पैकेज लेकर पैसा रोज बचाते
पैसा रोज बचाते SMS का दौर जो ठहरा
ऊपर से मम्मी पापा का पहरा न होता गहरा
'शिशु' कहें आजकल लोग SMS से ही काम चलाते
मंदी के इस दौर में प्रेमी-प्रेमिका फ़ोन से कम बतियाते

Sunday, August 23, 2009

पहरेदार बड़ा बेचारा, देखा उसने नया नज़ारा

पहरेदार बड़ा बेचारा
देखा उसने नया नज़ारा
कार के पीछे कार खड़ी थी
मैडम उसपर भड़क रही थी
उसको जाकर डांट पिलाई
अपनी फिर औकात दिखायी
मैंने तुझको था लगवाया
यंहा चले है मेरी माया
तू तो है गरमी का आदी
कपड़े भी तेरे हैं खादी
मुझको गरमी बहुत सताती
सुबह-सुबह एसी चलवाती
बिन एसी के रहा न जाता
यह मौसम है रास न आता
जल्दी कर ये कार हटा
किसकी है ये साफ़ बता
पता नही मैं क्या हूँ चीज
मुझको आती कितनी खीज
पहरेदार प्यार से बोला
समझ गया मैडम हैं शोला
साहब बड़े कार हैं लाये
ऑटो से वो आज न आये
मैंने उनको था समझाया
पर उनको था समझ ना आया
जाकर उन्हें अभी हड़काता
चाभी छीन-छान कर लाता
मैडम फिर से भड़क गयी
कार के भीतर बैठ गयीं
पहले तो क्यूँ बोल न पाया
भेद ठीक से खोल ना पाया
ठहर सज़ा इसकी दिलवाती
साहब को मैं अभी बताती
उनको तू हड्कायेगा?
उनकी कार हटाएगा?
उसको दिन में दिख गया तारा
सीधा-साधा था बेचारा
देखा उसने नया नज़ारा
पहरेदार बड़ा बेचारा
देखा उसने नया नज़ारा

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