Tuesday, April 21, 2009

हाय मंहगाई है! हाय मंहगाई है!

हाय मंहगाई है! हाय मंहगाई है!
शोर चहुंओर सुनाई रहा जोर जोर
काम-धाम कोई नहीं, लोग बेहाल हैं,
मालामाल जो पहले थे अभी फटेहाल हैं।
शेयर का गेयर फंसा है मोटर गाड़ी में,
फैशन को छोड़छाड़ महिला है साड़ी में।
डेटिंग भी नेट पर है कौन जाय होटल में
बिल बहुत आवत है टुटपुजिंया होटल में।
घरमा नहीं हल्दी है घरमा नहीं मिर्चा है।
लेइलेउ लोन संइयां कहीं से उधार में
खर्चा स्कूटर का उतना ही पड़े बलम
इसलिए हम घूमेंगे टाटा नैनों कार में।
'शिशु' कहें शर्म के मारे बुरा हाल है
बड़े बड़े अफसर की बदल गयी चाल है।

जबसे मैंने नया जूता खरीदा है मेरी चाल बदल गयी है

जबसे मैंने नया जूता खरीदा है
मेरी चाल बदल गयी है
पर जमाने की चाल वही है
दोस्त कहते हैं कि
मैं बायें पैर पर ज्यादा वजन डालने लगा हूं।
बात यह है कि
दाहिने पैर की तकलीफ टालने लगा हूं।
(सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की कविता जूता-2 से साभार)

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