Tuesday, February 9, 2010

वैज्ञानिक कहते परिवर्तन, ये जलवायु बदलने से

आई है बसंत ऋतु फिरसे, क्या हरियाली भी लायेगी,
फूल खिलेंगे डाली-डाली क्या कोयल सुर में गायेगी.

अब जाड़ों में होती वर्षा, क्या गर्मी में खिलेगी धूप
वर्षा होगी बारिश ऋतु में या होगा कुछ और ही रूप

मौसम भी अब इंसानों सा अपना रूप दिखाता है
है कोई ऐसा अब मौसम जो हमको अब भाता है

वैज्ञानिक कहते परिवर्तन, ये जलवायु बदलने से
पर्यावरण संतुलित होगा खुद की सोच बदलने से

पंडित जी बोले अब कलयुग लगता है हो गया जवान,
अब भी वक्त संभालने का है बदल ले अपने को इंसान,

'शिशु' सलाह दे सकता ना, ये है 'नज़र नज़र का फेर',  
वक्त बहुत कम है इंसानों सुधर अभी जा हुयी न देर. 

Sunday, February 7, 2010

'शिशु' कहें हाय! मंहगाई माता कुछ तरस दिखाओ,

मंहगाई है बहुत आजकल चीनी कम ही खाना,
पीली दाल बिक रही है जो उसको रोज पकाना,
उसको रोज पकाना, हरी सब्जी का कर परहेज,
काम खुद ही करना, कामवाली बाई को देना भेज,
'शिशु' कहें हाय! मंहगाई माता कुछ तरस दिखाओ,
चीनी पहले वाली कीमत में तुम सबको दिलवाओ. 

गैस के दाम बढेंगे और, श्रीमती ने कान में बोला
पढ़ती हूँ अखबार आजकल सोना है किस तोला
सोना है किस तोला, बिचौलियों की आजकल चांदी
दो तोला मुझको दिलवादो प्रियतम हूँ मैं आपकी बांदी* 
'शिशु' कहें दोस्तों मैं आजकल बांदी-चांदी से डरता
गैस के दाम बढ़ना ना प्रभु तुमही मंत्री दुख हरता

*पुराने समय में दासी को बांदी कहा जाता था.  

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