Saturday, June 9, 2018

तन्हा इतना कि उदास गलियों में, मैं भटकता ही रहा।

तन्हा इतना कि उदास गलियों में, मैं भटकता ही रहा।
वो शख़्स बेरंग मौसम की तरह था, खटकता ही रहा।

मैं  बहुत  बेकरार था समा जाने  को  उनके  पहलू में,
और वो खुदगर्ज इतना, अपने बाजू झटकता ही रहा।

एक  अरसा  बीत  गया, उनका  नाम लेते लेते  मुझे,
देखिये! लबों पर आज भी वो नाम अटकता ही रहा।

उसकी आवाज़ केलिए ऐसे ही सफर नहीं किया था!
वो बोलता शहद जैसा था, जुबां से टपकता ही रहा।

हमने  गाँव  से ज़्यादा  शहर में  काटे  हैं  दिन  'शिशु'
कमबख्त शहर है कि मेरी आंखों में खटकता ही रहा।

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