Thursday, May 9, 2019

अनुत्तरित।

हर गाँव हमारा गाँव लगे!
हर शहर अजनवी जैसा क्यों?
ख़ुद आलोचनाएँ पूछें शहरी-
बतलाओ 'शिशु' है ऐसा क्यों?

क्यों गली मोहल्ले सूने हैं,
गाँवों से लोग पलायित क्यों?
खेतीबाड़ी का मोह त्याग,
शहरों के प्रति लालायित क्यों?

सब रिश्ते बदल रहे हैं क्यों,
क्यों दिल में करते लोग घाव?
अपनों में अपनापन विलुप्त,
घर में बढ़ता है क्यों दुराव?

क्यों परंपराएं बदल रहीं-
संस्कृतियों से है मोहभंग?
सभ्यता नहीं दिखती हममें,
क्यों लोग देखकर नहीं दंग?

क्यों प्रश्न बहुत ही ज़्यादा हैं,
क्यों उत्तर का है पता नहीं?
क्यों औरों में दिखतीं कमियाँ,
क्यों ख़ुद की दिखती ख़ता नहीं?

©शिशु #नज़र_नज़र_का_फ़ेर

Monday, May 6, 2019

बात उसकी मुहं जुबानी याद आती हैं।।

प्यार की पहली निशानी याद आती है,
आज भी वो छेड़खानी याद आती है।

मैं मना करता रहा, होठ गीले हो गए,
वो नशे की वो कहानी याद आती है।

बात पहले की बहुत पर होश ताज़ा है,
मछलियाँ सारी पुरानी याद आती हैं।

बात उसकी गाँठ में आजतक बांधे रहा,
बात उसकी मुहं जुबानी याद आती हैं।।

हद से ज़्यादा हो गईं हैं छिपकिली घर में,

हल्का फुल्का अंदाज़😊

रात में  चश्मा लगाते  हो  मियाँ  काला।
देखकर चलना 'हियाँ' गहरा बहुत नाला।।

आँख में सुरमा लगा था, कान में बाला।
देखकर  बेहाल  'बन्ने' हो  गए  खाला।।

कह रहा था रात में बारिश बहुत होगी,
देखकर निराश छोटा सा हुआ 'झाला'।

कुछ  बाराती सोच में थे, मैं कहाँ बैठूँ।
दोस्तों 'हम' बैठ गए खोलकर 'डाला'।

हद से ज़्यादा हो गईं हैं छिपकिली घर में,
मकड़ियों को जान बूझ है गया पाला।।

शब्दार्थ:
हियाँ: यहाँ
झाला: हल्की बारिश, आई और गई।
डाला: टैक्टर की ट्राली में पीछे की तरफ, जंजीर खोलकर बनाई गई जगह।
पाला: पालतू

Popular Posts

Internship

After learning typing from Hardoi and completing my graduation, I went to Meerut with the enthusiasm that I would get a job easily in a priv...