Thursday, September 9, 2010

कहीं भिखारी के चक्कर में दूसरा ना पीसे जेल की चक्की.

सभी भिखारी आजकल करतब रहे हैं सीख,
करतब करके खेल में वे सब मांगेंगे भीख, 
वे सब मांगेंगे भीख आजकल कपड़े रहे खरीद,
नए-नए परिधानों में सज भीख की देंगे रसीद,
'शिशु' कहें दिल्ली की पुलिश है आजकल हक्की-बक्की,
कहीं भिखारी के चक्कर में दूसरा ना पीसे जेलकी चक्की.

अतिथि, आपको बुला रहा भारत में आओ..खेलो, देखो खेल, हमारे व्यंजन खाओ.

अतिथि, आपको बुला रहा भारत में आओ,
खेलो, देखो खेल, हमारे व्यंजन खाओ,
देखो, समझो, परम्पराएं मेरी,
आओ जल्दी करों न अब तुम देरी.
सभ्यता और संस्कृत से खुद जुड़ जाओ
सुन रखा था जैसा, वैसा ही सम्मान भी पाओ
भाई-चारा-बंधुत्व भाव मन लाये हैं
आपके आने में हम अपनी पलक बिछाए हैं
और हम भी सीखेंगे आपकी बोली-भाषा और गीत,
आप आयेंगे हमको याद भले ये पल जायेंगे बीत,
संगम होगा सभ्यता और संस्कारों का
ऊर्जा आयेगी एक-दूसरे के नए विचारों से
और भी बढ़ जायेगी मित्रता खेल के इसी बहाने से
प्यार आपस में होगा आपके आने से....
प्यार आपस में होगा आपके आने से....
प्यार आपस में होगा आपके आने से....

Tuesday, September 7, 2010

एक भिखारिन रोज़ सड़क पर खड़ी मांगती भीख...

एक भिखारिन सड़क पर मांग रही थी भीख,
छोटी बच्ची साथ में उसके, देती थी ये सीख-

कपड़े मैले पहन अरी ओ, आँख में आंसू आने दे,
बिना लिए पैसे हुजूर से बिल्कुल ना घर जाने दे,

बाबूजी-बाबूजी बोल, रोककर के दिखलाती जा,
माता जी भूखीं हूँ कल से, बातें नयी बनाती जा,

पकड़ हांथ में बैसाखी ये, लंगड़ी भी बन जाना,
गांठ बाँध ले बात हमारी भर दिन कुछ ना खाना!

'शिशु' ने उस बच्ची को एक दिन दौड़ लगाते पाया,
सोंचा ये इंसान की देन है या ईश्वर की माया!

Monday, September 6, 2010

खेल-खेल बस खेल ही रटती देखो खेलो की दीवानी

खेल दिखाएँगे हम ऐसे, तुम-सब रह जाओगे दंग,
और खेल में तुम-सब लोग सीख जाओगे ढंग
सीख जाओगे ढंग, बस रंग में भंग न करना
फिर भले खेल के बाद सभी देना धरने पर धरना
'शिशु' कहें शीला जी बोलती आजकल मीठी बानी
खेल-खेल बस खेल ही रटती देखो खेलो की दीवानी 

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