इंगलिश पढ़े सो बाबू होय,
हिंदी को पूछे नहि कोई।
सभी जगह अंग्रेजी बोली,
जिसने भी जबान जब खोली।
यदि अंग्रेजी नहीं है आती,
बात तुम्हारी सुनी न जाती।
आफिस में अंग्रेजी बोलो,
वेतन जितना चाहे ले लो।
होटल में तुम जब भी जाओ,
अंग्रेजी में बात सुनाओ।
बैरा बात सुनेगा ज्यादा,
भाव भी देगा पक्का वादा।
हिंदी में जबान यदि खोली,
समझदार समझे ना बोली।
यदि मैडम को इंग्लिश आती,
नौकर को रहती हड़काती।
यूपी वालों कहना मानो,
अंग्रेजी की महिमा जानो।
मैं भी यू।पी का हूं वासी,
बात दुखद हिंदी का भाषी।
जितनी हिन्दी मेरी अच्छी,
अंग्रेजी उतनी है कच्ची।
दोस्त यार सब रोज बताते,
अंग्रेजी की महिमा गाते।
'शिशु' ने भी अबसे यह ठाना,
अंग्रेजी है एक निशाना।
मैडम एक बहुत हैं सच्ची,
इंग्लिश जिनकी सबसे अच्छी।
अंग्रेजी का ज्ञान वो देंगी,
बदले में कुछ भी ना लेंगी।
Friday, January 16, 2009
जाड़ा बहुत जाड़ा बहुत लोग बोलने लगे
जाड़ा बहुत जाड़ा बहुत लोग बोलने लगे।
कैसे दूर जाड़ा हो यह भेद खोलने लगे।।
कम्बल से जाड़ा अब जाति नाहिं देखि लो।
हाफ स्वेटर छोड़के एक चद्दर लपेटि लो।।
कोट पैंट पहन के घूमें सब बाबू लोग।
चीथड़े लपेटे हुए घूमते गरीब लोग।।
कमरे में बैठ कर और हीटर आन कर।
कानों में टोपी या मफलब को बांधकर।।
बूढ्ढ़े कहते जाड़ा बहुत मौसम बहुत सर्द है।
युवा लड़की बोले यही मौसम बेदर्द है।।
कहां हम गर्मी में घूमते थे टॉप में।
अभी देखो स्वेटर और स्कार्प में।।
‘शिशु’ कहें जाड़े का मजा लूटि ले भाई
3 महीने बाद फिर यही मौसम याद आई।।
कैसे दूर जाड़ा हो यह भेद खोलने लगे।।
कम्बल से जाड़ा अब जाति नाहिं देखि लो।
हाफ स्वेटर छोड़के एक चद्दर लपेटि लो।।
कोट पैंट पहन के घूमें सब बाबू लोग।
चीथड़े लपेटे हुए घूमते गरीब लोग।।
कमरे में बैठ कर और हीटर आन कर।
कानों में टोपी या मफलब को बांधकर।।
बूढ्ढ़े कहते जाड़ा बहुत मौसम बहुत सर्द है।
युवा लड़की बोले यही मौसम बेदर्द है।।
कहां हम गर्मी में घूमते थे टॉप में।
अभी देखो स्वेटर और स्कार्प में।।
‘शिशु’ कहें जाड़े का मजा लूटि ले भाई
3 महीने बाद फिर यही मौसम याद आई।।
नारीवाद आ गया देखो बात बहुत है अच्छी
सास बहू के नाटक से एक बात समझ में आयी
रिश्ते बनते हैं कैसे और कैसे होती लड़ाई।
भारी-भरकम मेकप में रोना और हंसना होता,
महिला पात्र की बात करें क्या पुरूष पात्र मेकप में सोता।
इस मेकप को देख के देखो पार्लर की बन आयी।
रिश्ते बनते हैं कैसे और कैसे होती लड़ाई।
पुरूष काम पर जैसे जाते, महिला जाती पार्लर,
पैसे का जुगाड़ वो करती पकड़ पुरूष का कार्लर
ऐसा देख के मुझको भी मेरे गांव की याद सताई।
रिश्ते बनते हैं कैसे और कैसे होती लड़ाई।
गांवों में भी बन-ठन कर अब महिला करती काम,
सीता, दुर्गा हो गयीं पीछे तुलसी का लेती नाम।।
देख के बा के मेकप को एक बुढ़िया भी शरमाई।
रिश्ते बनते हैं कैसे और कैसे होती लड़ाई।
'शिशु' कहें यह देख के यारों एक बात समझ में आयी
पुरूष सभी अब पीछे हो गये महिलाओं की बनि आई
पारिवारिक ढांचा है बदला, सोच भी बदली सच्ची
नारीवाद आ गया देखो बात बहुत है अच्छी
जो भी मन में आया था वह लिखके यहां बताई।
रिश्ते बनते हैं कैसे और कैसे होती लड़ाई।
रिश्ते बनते हैं कैसे और कैसे होती लड़ाई।
भारी-भरकम मेकप में रोना और हंसना होता,
महिला पात्र की बात करें क्या पुरूष पात्र मेकप में सोता।
इस मेकप को देख के देखो पार्लर की बन आयी।
रिश्ते बनते हैं कैसे और कैसे होती लड़ाई।
पुरूष काम पर जैसे जाते, महिला जाती पार्लर,
पैसे का जुगाड़ वो करती पकड़ पुरूष का कार्लर
ऐसा देख के मुझको भी मेरे गांव की याद सताई।
रिश्ते बनते हैं कैसे और कैसे होती लड़ाई।
गांवों में भी बन-ठन कर अब महिला करती काम,
सीता, दुर्गा हो गयीं पीछे तुलसी का लेती नाम।।
देख के बा के मेकप को एक बुढ़िया भी शरमाई।
रिश्ते बनते हैं कैसे और कैसे होती लड़ाई।
'शिशु' कहें यह देख के यारों एक बात समझ में आयी
पुरूष सभी अब पीछे हो गये महिलाओं की बनि आई
पारिवारिक ढांचा है बदला, सोच भी बदली सच्ची
नारीवाद आ गया देखो बात बहुत है अच्छी
जो भी मन में आया था वह लिखके यहां बताई।
रिश्ते बनते हैं कैसे और कैसे होती लड़ाई।
सत्य मार्ग पर चलते जो हैं, कष्ट उठाते रहते
सत्य मार्ग पर चलते जो हैं, कष्ट उठाते रहते।
भौतिकवादी इस जीवन में, धन की हानि सहते।।
लोग आज-कल के जो हैं, आधे से ज्यादा पापी।
अच्छे-अच्छे कम दिखते हैं, बहुत अधिक अपराधी।।
सत्य अहिंसा की बाते अब फिल्मों में चलती है
गांधी जी उपदेशों की दाल कहां गलती है।
मूसा-ईशा, हजरत ने था प्यार का पाठ पढ़ाया।
आज का मानव है कहता ये समझ न मेरे आया।।
गौतम ऋषि की वानी में था हत्या पाप जीव की।
अभी देखलो इस कलयुग में बोलबाल है इसकी।।
श्रीकृष्ण ने गीता में एक कर्म का पाठ पढ़ाया।
इस युग में सब कहते रहते कर्म से पहले माया।
अब धर्म पाठ को याद कराने वाले हो गयी पापी।
राजनीति में घुस गये सारे जितने थे अपराधी।।
'शिशु' कहें एक बात हमारे समझ नहीं है आती।
सुबह, शाम या रात कभी हो हरदम यही सताती।।
कैसे हो जीवन यह अच्छा कोई हमें बताये।
इस मारा-मारी, कटुता को कैसे दूर भगायें।।
सत्य अहिंसा सीखे फिर से जीवन सफल बनायें
स्वर्ग-नर्क की बात नहीं है स्वस्थ-सुखी हो जायें।।
भौतिकवादी इस जीवन में, धन की हानि सहते।।
लोग आज-कल के जो हैं, आधे से ज्यादा पापी।
अच्छे-अच्छे कम दिखते हैं, बहुत अधिक अपराधी।।
सत्य अहिंसा की बाते अब फिल्मों में चलती है
गांधी जी उपदेशों की दाल कहां गलती है।
मूसा-ईशा, हजरत ने था प्यार का पाठ पढ़ाया।
आज का मानव है कहता ये समझ न मेरे आया।।
गौतम ऋषि की वानी में था हत्या पाप जीव की।
अभी देखलो इस कलयुग में बोलबाल है इसकी।।
श्रीकृष्ण ने गीता में एक कर्म का पाठ पढ़ाया।
इस युग में सब कहते रहते कर्म से पहले माया।
अब धर्म पाठ को याद कराने वाले हो गयी पापी।
राजनीति में घुस गये सारे जितने थे अपराधी।।
'शिशु' कहें एक बात हमारे समझ नहीं है आती।
सुबह, शाम या रात कभी हो हरदम यही सताती।।
कैसे हो जीवन यह अच्छा कोई हमें बताये।
इस मारा-मारी, कटुता को कैसे दूर भगायें।।
सत्य अहिंसा सीखे फिर से जीवन सफल बनायें
स्वर्ग-नर्क की बात नहीं है स्वस्थ-सुखी हो जायें।।
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