Saturday, July 11, 2020

जब एक गदहिया कुम्हार ने निरुत्तर कर दिया था-

जब एक गदहिया कुम्हार ने निरुत्तर कर दिया था-

तो इसमे बुरा कहाँ सरकार
पढ़ा जो सोलह दूनी आठ।
जमाता हूँ गदगे पर ठाठ...

शहर में ख़ाक कमाते हो,
गाँव तो खाली आते  हो।
बिना  मूँछों  के  मुँहचोट्टा,
नज़र तक जाली आते हो।।
रात में पीकर मैं अद्धा-
खुले में सोता डाल के खाट।
पढ़ा जो सोलह दूनी आठ।
जमाता हूँ गदहे पर ठाठ...

शहर में प्रतिदिन ही बेचैन-
बॉस के सुनते कड़वे बैन।
मोहमाया में पड़कर आप-
न लेते पलभर तक का चैन।।
खरीदा तो क्या है गद्दा-
नींद के लिए चाहिए टाट।
पढ़ा जो सोलह दूनी आठ।
जमाता हूँ गदहे पर ठाठ...

साथ में क्या ले जाएंगें?
कमाएंगे, क्या पाएंगें?
अधिक से अधिक यही होगा-
दाल रोटी ही खाएंगें।
बुरा तुम मानो पर दद्दा-
अंत में उठ जाती है हाट।
तो इसमे बुरा कहाँ सरकार
पढ़ा जो सोलह दूनी आठ।
जमाता हूँ गदहे पर ठाठ।।

ट्रक शायरी-1


भाँग,  धतूरा, गाँजा  है, माचिस,  बीड़ी-बंडल भी।
चिलम, जटाएँ, डमरू है, कर में लिए कमंडल भी।।
गंगाजल की  चाहत में  क्यूँ  होते  हलकान  'शिशु'।
कोरोना का काल भयानक,  घूम रहा भूमंडल भी।।

ट्रक शायरी-2
कार  चलना  सीख  रहा है,  स्कूटी तो  सीख गया।
संभल न पाता लेकिन साइकिल तक का हैंडल भी।
मामूली  ख़रोंच थी लेकिन, टांकें  पंद्रह  बीस लगे।
साइकिल सीख रहा था जब टूटी चप्पल सैंडल भी।।

पाला पड़ा गपोड़ों से।डर लग रहा थपेड़ों से।।

पाला  पड़ा  गपोड़ों  से।
डर  लग रहा थपेड़ों  से।।

अर्थव्यवस्था  पटरी  पर
आई  चाय  पकौड़ों  से।

बच्चे बिलखें कलुआ के,
राहत   बँटी  करोड़ों  से।

जीत गए फिर से खच्चर,
शर्त  लगाकर  घोड़ों  से।

जो  ठोकर  के  आदी  हैं,
उनको क्या डर रोड़ों  से।

अँग्रेजी सीख रहा हूँ-😊



बॉरोइंग  ड्यूज़  रखता   हूँ।
ज़ुबाँ    एब्यूज़   रखता   हूँ।।
 
वर्क  पेंडिंग  रहे  कुछ  दिन,
ख़ुद को कन्फ्यूज़ रखता हूँ।

माइजर    संग   मक्खीचूस,
बर्फ़  तक  यूज्ड  रखता  हूँ।

कहीं  ज़्यादा  न  बिल आए,
बल्ब  भी  फ़्यूज  रखता  हूँ।

ख़बर  झूठी  न  दिखला  तू,
न्यूज़  की  न्यूज़  रखता  हूँ।

©शिशु #नज़र_नज़र_का_फ़ेर

शब्दार्थ–
Borrowing: उधारी
Dues: देय राशि न देना
Abuse: ग़ाली गलौच
News: ख़बर
Pending: टालना
Confuse: भ्रम में रहना
Miser: कंजूस
Used: पहले से प्रयोग की गई
Fuse: बेकार

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