Saturday, July 31, 2010

कविता उसको अर्पित है ये, जो आलोचक है पहला

इंग्लिश जितनी अच्छी इनकी
उतनी ही प्यारी हिंदी
प्रूफ रीडिंग भी करते अच्छी
पकड़ तुरत लेते बिंदी

कैसे खर्चे हों ऑफिस में
बहुत बड़े ये ज्ञानी हैं
कितने ही गुस्से में हो पर
मीठी बोले बानी है

होता क्या है मैनेजमेंट
ये लोगों को सिखलाते
है क्या टाइम मैनेजमेंट?
खुद भी टाइम पर आते

एनजीओ की ओडिट के
ये बहुत बड़े ही ज्ञाता है
ऑफिस का माहौल हो कैसा
इनको अच्छा ये आता है

'शिशु' नहीं इन पर लिख सकता
'शिशु' अभी तो बच्चा है.
ज्यादा अगर जानना चाहो तो
फेसबुक ही सबसे अच्छा है


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Raj Kapil

Thursday, July 29, 2010

क्या गजब का देश है यह क्या गजब का देश है!

क्या गजब का देश है यह क्या गजब का देश है!
बिन अदालत औ मुवक्किल के मुकदमा पेश है!!

आँख में दरिया है सबके
दिल में है सबके पहाड़
आदमी भूगोल है जी चाह नक्शा पेश है!
क्या गजब का देश है यह क्या गजब का देश है!
हैं सभी माहिर उगाने
में हथेली पर फसल
औ हथेली डोलती दर-दर, बनी दरवेश है
क्या गजब का देश है यह क्या गजब का देश है!
पेड़ हो या आदमी
फर्क कुछ पड़ता नहीं
लाख काटे जाइये जंगल हमेशा शेष है,
क्या गजब का देश है यह क्या गजब का देश है!
प्रश्न जितने बढ़ रहे हैं
घट रहे उतने ज़वाब
होश में भी एक पूरा देश ये बेहोश है!
क्या गजब का देश है यह क्या गजब का देश है!
खूटियों पर ही टंगा
रह जायेगा क्या आदमी?
सोचता, उसका नही यह खूटियों का दोष है. 
क्या गजब का देश है यह क्या गजब का देश है!

(उपरोक्त कविता स्वर्गीय श्री सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की लिखी हुए है, इसे मैंने कई बार पढ़ा है.)

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