Thursday, April 26, 2018

अनकही बातें।

दर्ज किताबों में होना है, जिनका है कुछ नाम नहीं,
उनको भी होना है जिनका मुल्क में कोई काम नहीं।
बिना वजह की बहसों से, कुछ, लोगों को बांट रहे,
नक़ली बाबा, नक़ली नेता, असली चाँदी काट रहे।
ग़ुर्बत में दिन बीत रहे हैं मेहनत करने वालों के,
'शिशु' किसानों को लाले हैं आज निवालों के।
लोकसभा में लोकत्रांतिक मूल्यों का है अर्थ नहीं,
झूठ मानने वालों मानो, इसमें कोई शर्त नहीं।

Wednesday, April 25, 2018

लाज़िम है परछाईं उनके संग हो गई है...

कली और भौरों में जबसे जंग हो गई है।
तबसे गुलशन की रौनक बेरंग हो गई है।

जलकर राख हो गईं फसलें जबसे खेतों में,
बदहाली ये देख 'स्वयमं' ही दंग हो गई है।

अम्बुद, पवन और भानू में याराना को देख,
लाज़िम  है परछाईं  उनके संग हो गई है।

हथियारों की रौनक जबसे बाजारों में छाई,
तबसे  भूमंडल  में  आम  जंग हो  गई है।

सत्ता में चलता है जबसे एक व्यक्ति का सिक्का,
कोर-कमेटी  ख़ुद-सबकी-सब  भंग हो गई हैं।

Tuesday, April 24, 2018

उससे ज़्यादा दुःखी आज हर नारी लगती है...

ऐसे आते हैं ख्यालात कि रातें भारी लगती हैं,
एक नहीं, दो-चार नहीं, कुल सारी लगती हैं।

सबका बोझ उठाये क्यों हैं घूम रहे भगवान!
पंडित जी बोले ये उनकी जिम्मेदारी लगती है।

शोषित, पीड़ित और कमेरों की हालत बेकार,
उससे ज़्यादा दुःखी आज हर नारी लगती है।

हाक़िम बदले और बदल गए हुक्म चलाने वाले,
मगर गरीबों से तो लूट आज भी जारी लगती है।

हिन्दुस्तान के टुकड़े होने को सदियाँ हैं बीत रहीं,
हिन्दू-मुस्लिम में पर जंग आज भी जारी लगती है।

जाति-व्यवस्था और धर्म पर जब भी करता चोट,
पोंगापंथी, धर्म के ठेकेठारों को ये गारी लगती है।

जब भी भाई-भाई में होते हैं कुछ झगड़े फ़साद,
सबसे ज़्यादा दुःखी घरों में तब महतारी लगती हैं।

चेहरे पर है गर्द समझने आया है ।

चेहरे पर है गर्द समझने आया है ।
मेरे सब दुख - दर्द समझने आया है ।
उम्र हुई आँखों का सागर सूख गया ,
अब जाकर बेदर्द समझने आया है ।
फूल कली में अन्तर समझ न पाया जो,
जाने क्या नामर्द समझने आया है ?
बातों मे है शहद और तन पर खादी,
बनकर दहशतगर्द समझने आया है ।

भाग हो गए दुःख सभी खुशियां रह गयीं शेष...

आबोहवा बदल गई, बदल गया परिवेश।
भाग हो गए दुःख सभी खुशियां रह गयीं शेष।।

मित्र खड़े हों साथ में तब दुःख की क्या बात!
दिल से दिल मिलते रहें और हांथ से हांथ।।

दौलतमंद शहर हैं लेकिन गांव में बरसे प्यार।
आते-जाते सब रहें, समझें 'शिशु' ये सार।।

मर्यादा में बात हो रही कितनी मीठी बोली है।
बूढ़ा बच्चा और जवान जिसने भी जब बोली है।

 

Monday, April 23, 2018

कुछ ऐसा लिखिए गुरु द्वेष द्वंद हो नाश,

कुछ ऐसा लिखिए गुरु द्वेष द्वंद हो नाश,
जन-मानस के बीच में जम जाए विश्वास।
जम जाए विश्वास, लोग अब हैं अवरोधी,
छोटी-छोटी बातों से हो जाते अतिक्रोधी।
'शिशु' क्रोध, द्वेष, द्वंद से करो किनारा,
प्यार, मोहब्बत, भाईचारा है अब नारा।।

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