अजीबोगरीब ख़्वाब आजकल मुझे आने लगे हैं।
और हकीकत में सुबहो-शाम मुझे डराने लगे हैं।।
जिन्होंने पढ़ा नहीं कभी 'सामाजिक विज्ञान' 'शिशु'
वो समाज को 'समाज की परिभाषा' सिखाने लगे हैं!
सरेआम कत्लेआम का इल्जाम था जिन पर कभी,
वो 'इंसानियत' को 'अहिंसा का पाठ' पढ़ाने लगे हैं!
राजनीतिक 'दाँव-पेंच' का शौक जबसे चढ़ा है उन्हें,
तभी' वे आजकल 'पतंग' से पेंच लड़ाने लगे हैं!
बहुत उड़ाते थे दूसरों की खिल्ली 'सोशल मीडिया' में,
अब अपने पर आई तब 'कायदे-कानून' बनाने लगे हैं।