Wednesday, November 12, 2008

आलोचनाओं से सबक मिलता है


इसमें संदेह नहीं है कि आलोचना किसी के लिए नुकसान देय है। इसीलिए कबीर दास जी ने भी कहा था-‘‘निंदक नियरे राखिये’। लेकिन यहां यह भी सत्य है कि यदि वही आलोचना किसी बैर भाव, उपहास और जानकारी के अभाव में की गयी है तो वह आलोचना आलोचक के लिए भी आलोचना बन जाती है। कहा तो यहां तक जाता है कि आलोचक ही सबसे बड़े प्रसंसक होते हैं। है कोई इसका जवाब? आपका जवाब आयेगा नहीं है इसका कोई जवाब।

मैंने अपना ब्लॉग लिखना अभी-अभी शुरू किया है। मतलब यह कि मैं अभी इस लाइन में नौसिखिया हूं। लोग पूछते हैं तुम्हारे ब्लॉग का उद्दे’य क्या है? तब मैं निरूत्तर हो जाता हूं। क्योंकि ब्लॉग लिखते समय मैंने यह सोचा ही नहीं था कि इसका होगा क्या। हां बात यह थी कि मन में कुछ उथल-पुथल मच रही थी उसे लिख डाला। अकेला जो था उस समय। सो उस समय मन में जो आया उसी की नकल बस ब्लॉग में उतार दी। कहने का मतलब यह है कि मेरा ब्लाग मेरे दिमाग की नकल है और कुछ नहीं।

मुझ जैसे नौसिखिया ब्लॉगर के लिए जब प्रसंसाएं मिलती हैं तो मन बाग-बाग हो जाता है।आलोचनाओं के लिए मैं अभी तैयार नहीं हूं। इसलिए आलोचनाएं मिलने पर मन को बहुत कष्ट होता है। इन्हीं आलोचनाओं के चलते ही मैने अपने ब्लॉग का नाम नजर नजर का फेर रखा। यह बात अलग है कि अब तक मिली हर आलोचना पर मैने गौर किया है उसे समझा है और अमल में भी लिया है।

आलोचनाओं से सबक मिलता है। आगे से मैं अपने लेख में उसका ध्यान रखता हूं। अभी की बात है मेरा लेख था ‘हमारा हीरा रोबोट हीरा है’ उस पर एक प्रसिद्ध आलोचक और ब्लॉग जगत के मशहूर लेखक एवं कवि श्री साधक जी की आलोचना कुछ इस प्रकार आयी-
भरा संवेदन दीखता कैसे कहें रोबोट
हीरा है यह आदमी ना बोलें
ना बोले रोबोट स्वयं की सीमा जाने
अपना काम करने पूरा, आलस ना जाने
कह साधक कवि, हम करते भावों का वेदन
कैसे कहें रोबोट दीखता भरा संवेदन।।

इसी तरह और भी आलोचनाएं आयी हैं जिनका विवरण शायद मेरे बूते की बात नहीं। हां उन पर गौर जरूर मैने किया है और उसके द्वारा अपने लेख को सुधारा भी है।

वहीं दूसरी तरफ कुछ एक कमेंटस ऐसी भी हैं जो लिखित तो नहीं हैं, लेकिन हैं कमेंट्स हीं, वह हैं हमारे सहकर्मियों की जो आहे-बगाहे मेरे ब्लॉग को देखते हैं। मैं यहां पर उनका नाम नहीं देना चाहता। वह खुद ही पढ़कर जान जायेंगे कि मैं किसके बारे में लिख रहा हूँ । ऐसे लोग एक-आध ही हैं। उन पर कबीर दास जी का यह दोहा क्या सटीक बैठता है-
कबिरा इस संसार में घणें मनुष मतिहीन।
राम राम जाने नहीं आये टोपादीन।।

अरे यह क्या मैं भी आलोचना करने लगा। यह ठीक नहीं है मेरे लिए।

Tuesday, November 11, 2008

नौकरी के नौ काम दसवां काम हाँ हजूरी


नौकरी के नौ काम दसवां काम हाँ हजूरी
फिर भी मिलती नही मजूरी
पूरी मिलती नही मजूरी
जीना भी तो बहुत जरूरी
इसीलिये कहते हैं भइया
कम करो बस यही जरूरी

घंटे आठ काम के होते
दो घंटे का आना-जाना
इसी तरह बारह हो जाते
इसको सबने ही है माना

कहने को हम बड़े काम के
फिर भी तो छुट्टी हो जाती
एक बात का और भी गम है
छुट्टी सारी ही कट जाती

कल क्या होगा किसने देखा
आज की बात अभी करते हैं
काम नही होता है जब भी
एक ब्लॉग यूँ ही लिखते हैं

बात लिखी है अभी अधूरी
पढ़कर कर तुम कर दोगे पूरी
ऐसा है विश्वास हमारा
यह नेता का नही है नारा

हिन्दी और बिंदी का क्या कभी लगाओ कभी उतारो


हिन्दी और बिंदी का क्या कभी लगाओ कभी उतारो
हिन्दी भासी और औरत को मिले वहीं पर मारो
हाय यही हो रहा देश में किसको कान्हा पुकारूँ
क्या यह देख खुदही की चाँद पे सौ सौ चप्पल मारूं
हिन्दी और औरतों पर हो रहे अत्याचार
नही समय अब भी बदला है यह कहते अखबार
यह कहते अखबार बात तुम मेरी मानों
कहते हैं 'शिशुपाल' आज हिन्दी को जानो
और औरतों की महिमा को तुम पह्चाओ।

Monday, November 10, 2008

हमारा हीरा, रोबोट हीरा है


लीजिये हीरा रोबोट बन गया। इससे पहले की आप हीरा रोबोट की कहानी पढ़े हीरा के बारे में जान लेना आवश्यक है. हमारा हीरा कोई मूल्यवान आभूषण न होकर एक आम इंसान है, नही, एक खास इंसान है. दरअसल उसका नाम हीरा है और वह एक इंसान है इसलिए हम इस हीरा की बात करेंगे न की उस हीरा है.

हीरा हमारे ऑफिस का सहकर्मी है। जो हमारे साथ काम करते हुए भी हमारा नही है. बात यह है की हीरा की कंपनी ने हमें यह हीरा दिया. हीरा की कंपनी ने हमें सपोर्ट स्टाफ और ऑफिस के लिए जगह मुहैया कराई है.

हीरा से मेरी पहली मुलाकात इस वर्ष फरवरी महीने के दूसरे सप्ताह में हुई थी। यहाँ हम हीरा के मूल निवास का जिक्र नही करेंगे क्योंकि उससे इंसान की पहचान करना इंसानियत नही। ऐसा मैं नही बल्कि विद्वान लोग कहते हैं। और मैं कोई विद्वान तो हूँ नही। ऐसा कहते हैं देश और समाज को चलाने वाले। खैर छोडिये इस बहस को और आइये कहानी पर गौर करें.

हम बात कर रहें हैं की हीरा हीरा न होकर रोबोट कैसे है। इस पर हम विस्तार से चर्चा करेंगे. बात यह है की हमारा हीरा ऑफिस के सभी कर्मचारियों का सामान रूप से सम्मान करता है उसकी नजर में रजा और रंक वाली भावना नही है. वह ऑफिस में अधिकारीयों से लेकर कमचारियों तक सभी का काम करता है. वह हर किसी के आर्डर को गंभीरता से लेता है. हमारा हीरा सभी की बात को सुनता, समझता और उसका पालन करता. हीरा बैंक के काम से लेकर ऑफिस स्टाफ के लिए सिगरेट लाना, खाना लाना, डस्टिंग करना चाय देना. आदि सभी प्रकार के काम करता है. मैंने हीरा को कभी भी काम से जी चुराते नही देखा. फिर चाहे कोई काम हो हीरा कभी न नही करता. भले ही हीरा को उस काम की जानकारी हो या न हो.

हमारे हीरा की जान पहचान भी कम नही है। किसी भी बैंक में का नाम लीजिये हीरा का कोई न कोई न कोई उस बैंक में होगा ही. हीरा किसी को भी शिकायत का मौका नही देता. हीरा की सबसे बड़ी खूबी यह है की हीरा समय का बहुत पाबन्द है. हीरा का ऑफिस टाइम जैसे ही खत्म हुआ समझो हमारा हीरा अपने घर का हीरा हो जाता है.

अमूमन चार बजे के चाय हीरा है सबको देता है। बस चाय के कप ट्रे में रखे और चल पड़ा. चाय में चीनी कम है या चाय अच्छी नही बनी इससे हीरा को कुछ लेना देना नही है. वह तो साफ़ कहता है साहब चाय में कोई शिकायत है को किचन में बात कीजिये. हमारा काम चाय देना है चाय बनाना नही. बात भी तो हीरा की ठीक है क्यूँ सुनेगा भला वो किसी की. यह काम हीरा को कोई है.

हीरा के इन्ही गुणों के कारण हम कभी कभी उसे रोबोट कहते हैं. जन्हातक मेरी समझ है रोबोट का भी काम कुछ ऐसा ही होता होगा. लेकिन नही हमारा हीरा हीरा है रोबोट नही. तुलसी बाबा के वचन हमारे हीरा पर क्या खूब बैठते हैं. -
सूधा मन, सूधे वचन, सूधी सब करतूति।
तुलसी सूधे सकल विधि रघुवर प्रेम प्रसूदि।।

तो अबसे हम हीरा को हमारा हीरा, रोबोट हीरा है कहेंगे।

भारतीय रेल

भारतीय रेल की पूरी आमदनी का 70 प्रतिशत माल ढुलाई से आता है। सवारी गाड़ियाँ आमतौर पर घाटे पर चलती है। माल ढुलाई के आय से सवारी गाड़ियों की घाटे की भारपाई होती है। हाल में ही ‘कन्टेनर राजधानी’ शुरू किया गया। यह खाने पीने की जरूरी चिजों की ढुलाई करता है। यह गाड़ी 1 घंटे में 100 किलोमीटर चलती है।

दार्जलिंग हिमालयन रेलवे दुनिया भर के लिए दर्शनिये है। यह ट्रेन अभी भाप के इंजन से चलती है। इसे वल्र्ड हेरिटेजसाइट का दर्जा दिया है। यह सिलीगोड़ी से दार्जलिंग के बीच पहाड़ी रास्तो पर 2134 किलोमीटर चलती है। यह सबसे ऊपर का स्टेशन घुम है।

नीलगिरि माऊन्टेन रेलवे दक्षिण भारत के नीलगिरि हिल्स में चलती है। इसे भी वल्र्ड हेरिटेजारइट के अन्दर रखा है।

तीसरा हेरिटेजसाइट है मुंबई का छत्रपति शिवाजी टर्मिनश। पहले इसे विक्टोरिया टर्मिनश के नाम से जाना जाता था। पर ये भारतीय रेल के अन्दर ही आता है।

पैलेस और विल्स भाप इंजन से चलने वाली विशेष ट्रेन है। यह राज्यस्थान में टुरिज्म को बढ़ावा देने के लिए बनायी गई है।

महाराष्ट्र सरकार ने भी कॉन्कन रूट पर डेकन व्क्ब् चलायी। पर इसे पैलेस ऑन हिल्स जैसी सफलता नहीं मिली। समझौता एक्सप्रेस भारत से पाकिस्तान जाती है। कुछ कारणों से 2001 में बंद कर दिया गया था। 2004 से फिर चलने लगा है।

पाकिस्तान के खोखड़ा पार और भारत के मून्नाबाव तक थार एक्सप्रेस चलती है। 1965 में भारत और पाकिस्तान युद्ध के बाद इसे बंद कर दिया गया था। 18 फरवरी 2006 को इसे फिर से शुरू किया गया।

कालका शिमला रेलवे का नाम गिनिज ऑफ वल्र्ड रिकार्ड । वह ढलान पर चढ़ती हुई 96 किलोमीटर की ऊँचाई पर जाती है।

लाइफ लाइन एक्सप्रेस को आम तौर पर हॉसपीटल ऑन विल्स के नाम से जाना जाता है। यह ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ सेवायें प्रदान करती है। इसमें एक ऑपरेशन रूम होता है, एक स्टोर रूम होता है। इसके अलवा रोगियों के लिए दो और वार्ड होते हैं। यह ट्रेन देश भर में विभिन्न स्थानों पर रूक-रूक घुमती है।

रेलवे स्टेशनों में सबसे छोटा नाम इब है। और सबसे लम्बा नाम है- श्री वेंकटानरसिंहाराजूवारिया पेटा।

हिम सागर एक्सप्रेस सबसे लम्बा रूट तय करती है। यह कन्या कुमारी और जम्मूतवी के बीच चलती है। यह ट्रेन 3745 किलोमीटर (2327 मील) का सफर 74 घंटे और 55 मिनट में तय करती है।

बिना रूके सबसे लम्बा सफर तय करने वाली ट्रेन है त्रिवेंद्ररम राजधानी यह ट्रेन दिल्ली के निशामुद्दीन रेलवे और त्रिवेंद्ररम के बिच चलती है। यह ट्रेन बड़ौदा और कोटा के बीच बिना रूके चलती है।

भारतीय रेल की सबसे तेल गति से चलने वाली यात्री गाड़ी है भोपाल शताब्दी एक्सप्रेस। फरीदाबाद और आगरा के बीच यह गाड़ी 140 किलोमीटर प्रतिघंटा के हिसाब से चलती है। सन् 2000 में जब इसका टेस्ट हुआ था तब इसे 144 किलोमीटर प्रतिघंटे के हिसाब से चलाया गया था। फिर भी यह दुनिया के सबसे तेज चलने वाले गाड़ियों के मुकाबले सबसे कम है।

Popular Posts

Internship

After learning typing from Hardoi and completing my graduation, I went to Meerut with the enthusiasm that I would get a job easily in a priv...