Tuesday, August 16, 2016

'शिशु' गुजरी है वो गुजर गयी,

'शिशु' गुजरी है वो गुजर गयी,
अब अमन चमन में बना रहे।
वो चले गए ग़म बहुत भरा,
दिल प्यार में उसके सना रहे।
पतझड़ में पत्ते गिरते हैं,
पर जड़ के साथ में तना रहे।
अब जीत गए तब कहते हैं,
मंहगाई का पेड़ ये घना रहे।
उनको समझा था नेक हैं दिल,
वो सांप अभी फन फना रहे।

मिलते हैं भीड़ में, और खो जाते हैं।

मिलते हैं भीड़ में,
और खो जाते हैं।
इनमें कुछ ख़ास,
अपने से हो जाते हैं।।
पता ही नहीं क्यों,
हम याद करते हैं।
वो अनजान हैं,
बताने से डरते हैं।
सपनों में खो जाते हैं।
इनमें से कुछ ख़ास,
अपने हो जाते हैं।
कई बार ऐसा होता है
वो आते ही मुड़ते हैं
बिना बात किये ही
एक दुसरे से जुड़ते हैं
फिर अपने आप में खो जाते हैं
इनमें से कुछ ख़ास,
अपने हो जाते हैं।
कहीं धुप में छाता लिए,
कभी बारिश में भीगते हुए।
और चले जा रहे हैं मस्ती में
यूँ ही रीझते हुए।
दिल में खिंचे चले आते हैं
इनमें से कुछ ख़ास,
अपने हो जाते हैं।
एक हल्की सी आहट,
उनकी वो मुस्कराहट,
ये बंदिशों की रेखा,
'शिशु' पलटकर नहीं देखा।
चलो अब सो जाते हैं।
इनमें से कुछ ख़ास,
अपने हो जाते हैं।

भक्त संग आपिया भी महंगाई का मारा है।

हाय महंगाई है! हाय महंगाई 'शिशु'
शोर चहुँओर सुनायी रहा भोर से।
जाति-धर्म इसका न सभी जन एक हैं,
त्राहि-माम त्राहि-माम सुनो सभी छोर से।।
बड़े बड़े लोग भी दाल-भात बोल रहे,
कितने बेहाल सभी भेद जो हैं खोल रहे।
आते-जाते पैदल ही हेल्थ की दुहाई देते।
अच्छे दिन कहाँ हो, ख़ुदा की ख़ुदाई लेते।
हैं इतने बेहाल, अब होता न गुजारा है,
भक्त संग आपिया भी महंगाई का मारा है।

'शिशु' पान के ऐसे हैं अजब अनोखे किस्से।

बिन चूने का पान चबाकर चौबे बाबा बोले।
बचा-खुचा भी ऐसे बीते जय शिवशम्भू भोले।
लौडे चक्कर लगा रहे हैं सभी पान के खोखा।
घरवालों को चकमा देकर दुकानदार को धोखा।।
चूना कम कत्था है ज्यादा, खाकर बोले कोके,
उधरा पूरा मिल जायेगा, हमका काहे हो रोके।
खाके मीठा पान, पिचकारी थूक की छोड़ी।
घुमि रहे हैं गॉव में शोहदा हंसी हँसे हैं भोंडी।।
'शिशु' पान के ऐसे हैं अजब अनोखे किस्से।
लिखते रहो दोस्तों इसमें अपने भी हिस्से।।

...असल में जिंदगी सब कुछ हमें वहीं सिखाती है।

जहाँ न दूर-दूर कोई भी परिंदा दिखता है,
वहीं बैठ कवि अपनी कविता लिखता है।
जहाँ तक नज़र जाती है पानी ही पानी है,
वहां एक लेखक लिख सकता कहानी है।
जहाँ शोर नहीं, केवल सन्नाटा ही सन्नाटा है,
असल में किसान वहीं कहीं अन्न उपजाता है।
जहाँ दुःख और तकलीफ़ बहुत नज़र आती है,
असल में जिंदगी सब कुछ हमें वहीं सिखाती है।
जहाँ, प्रेम, करुणा, दया आदि बातें होती हैं,
'शिशु' असल में दुनियां वहां जाकर रोती है।

बोलिये! क्यों मौन हो?


बोलिये! क्यों मौन हो?
है शमा जब खूबसूरत,
तब 'शिशु' बेचैन हो।
बोलिये! क्यों मौन हो?
तपतपाती धूप है तो
छाँव मैं बन जाऊंगा।
आँधियाँ आएं तो क्या
दयार मैं बन जाऊंगा।।
है गुज़ारिश एक ये-
मत कहो तुम कौन हो।
बोलिये! क्यों मौन हो?
हो खुशी का आशियाना,
जिंदगी में ग़म न हो।
आंशुओं के साथ मैं हूँ,
आँख अब ये नम न हो।।
हो उजाला ज़िन्दगी में
दीप में कम लौ न हो।
बोलिये! क्यों मौन हो?
सात जन्मों की न कसमें,
हों न झूठी कोई रश्में।
इस तरह हो साथ अपना,
हमसफ़र सच हो ये सपना।।
ये सफऱ चलता रहे बस
साल चाहें सौ न हो।
बोलिये! क्यों मौन हो?

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