Tuesday, August 16, 2016

बोलिये! क्यों मौन हो?


बोलिये! क्यों मौन हो?
है शमा जब खूबसूरत,
तब 'शिशु' बेचैन हो।
बोलिये! क्यों मौन हो?
तपतपाती धूप है तो
छाँव मैं बन जाऊंगा।
आँधियाँ आएं तो क्या
दयार मैं बन जाऊंगा।।
है गुज़ारिश एक ये-
मत कहो तुम कौन हो।
बोलिये! क्यों मौन हो?
हो खुशी का आशियाना,
जिंदगी में ग़म न हो।
आंशुओं के साथ मैं हूँ,
आँख अब ये नम न हो।।
हो उजाला ज़िन्दगी में
दीप में कम लौ न हो।
बोलिये! क्यों मौन हो?
सात जन्मों की न कसमें,
हों न झूठी कोई रश्में।
इस तरह हो साथ अपना,
हमसफ़र सच हो ये सपना।।
ये सफऱ चलता रहे बस
साल चाहें सौ न हो।
बोलिये! क्यों मौन हो?

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