Friday, August 24, 2018

इस हद तक गिर सकते लोग ऐसा सोचा नहीं कभी था।

इस हद तक गिर सकते लोग,
ऐसा सोचा नहीं कभी था!

देशप्रेम की भाषा गढ़कर,
आ जाते हैं घर पर चढ़कर,
सब झूठी खबरों को पढ़कर।
मार-पिटाई काम से बढ़कर,
ऐसा पहले नहीं कभी था...
हमने सोचा नहीं कभी था।

गाय हमारी माता कहकर,
भावनाओं में आते बहकर,
भीड़भाड़ में रह-रह रहकर,
मारो, मारो, मारो कहकर,
ऐसा देखा नहीं कभी था।
सोचा ऐसा नहीं कभी था।

इस हद तक गिर सकते लोग
ऐसा सोचा नहीं कभी था।

Thursday, August 23, 2018

पूछते सवाल हैं।।

बाढ़ में,
सुखाढ़ में
मदद की दरकार थी,
तब सो रही सरकार थी,
लोग जो बेहाल हैं।
पूछते सवाल हैं।।

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