Tuesday, July 14, 2009

कल तीस का हो जाऊंगा

कल तीस का हो जाऊंगा
इन तीस सालों में
अब मै हिसाब लगता हूँ
तो पाता हूँ
कि एक पैर से
अपाहिज होने के अलावा
कुछ भी तो ऐसा नहीं घटा
जिस पर हानि समझ कर रोऊँ,

हां यह कहना कि
मैंने पाया भी कुछ कम नहीं,
तो क्या इस पर
बखान करके खुश होऊं

सोचता हूँ क्या शादी, नौकरी, रुतबा
केवल दिखावे के लिए है
या
यही जीने का मकसद है मेरा,
बहुत दिमाग लगाया
पर आज तक नहीं समझ पाया

हाँ समाज से गरीबी कैसे दूर होगी?
क्या अंतर है शहरी गरीबी
और
गाँव की गरीबी में
यह डेवलपमेंट सेक्टर में
रहकर जरूर सीख पाया

लेकिन
क्या फर्क पड़ता है
यह सब जान लेने से,
गाँव से ज्यादा शहर में गरीब हैं
यह मान लेने से,
की शहरों में गरीबी का ग्राफ बढ़ा है

मेरी नज़र में तो जी बस गरीब तो गरीब हैं,
फिर क्या फर्क पड़ता है
कि
वे शहर में रहें या गाँव में
हमें क्या हक कि हम उन्हें
धर्मं-जाति और मज़हब
की तरह बाँट दें
सच तो यह है
कि
वो एक हिस्सा हैं
हमारे समाज का

हम तो केवल
रोजी-रोटी के लिए
उन गरीबों के लिए काम करते हैं
वर्ना
किसे फिक्र है
और
किसे पड़ी है कि
वो गरीबी दूर करे

बीते कई सालों से
इसी सेक्टर में काम करते-करते
और
यह देखते-देखते कि
कौन गरीबों का मशीहा है
थक गया हूँ
और यह सोचकर कि
क्या होगा आगे के सालों में
सोचकर पक गया हूँ

अब किसकी फिक्र करू
किसकी नही
ये कौन बताएगा
मुझे पक्का यकीन है की
जो भी बताएगा
अपने बारे में ही बताएगा

Monday, July 13, 2009

अंतर बस इतना सा है!

हमें शांति भाईचारा से प्यार है
उन्हें इस पर एतराज है

हमें गीत, संगीत से लगाव है
उन्हें इससे अलगाव है

हमें अहिंसा, सत्य पर विश्वास है
उन्हें इस पर नहीं आस है

हमें अँधेरे, अत्याचार से इनकार है
वो मारामारी पर तैयार हैं.

हम हमेशा बातचीत के लिए तैयार हैं
वो करने लगते तकरार हैं.

हमें तो बस यही अंतर नज़र आता है
वर्ना रिश्ता निभाने में हमारा क्या जाता है.

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