Thursday, May 19, 2011

शराब चाहे कच्ची हो या पक्की इसके नुक्सान तो हैं और वो भी जानलेवा.


ऐसा कहा जाता है कि गावों में कच्ची शराब का धंधा कुटीर उद्योग के रूप में चलता है, कच्ची शराब की भट्ठियां धधकने का कारण बढ़ती बेरोजगारी और कम लागत में अधिक लाभ कमाना है! बेरोजगारी से जूझ रहे जिलों में तो कच्ची शराब का कारोबार अब कुटीर उद्योग का रूप अख्तियार कर चुका है और पेट की आग बुझाने के लिए लोग गाव-गाव में कच्ची शराब की भट्टिया धधका रहे। ग्रामीण अंचलों में कुछ लोगों का ये धंधा इतना ज्यादा फल फूल रहा है कि वे इसे रोजगार का जरिया बना बैठे हैं.  इस धंधे के फलने और फूलने कारण कम खर्च में अच्छा नशा होना है जिससे ग्रामीणों में कच्ची शराब के प्रति लगाव भी बढ़ रहा है। 
कुछ लोग कच्ची शराब का व्यवसाय इसलिए भी करते हैं कि इसमें लेबलिंग और ब्रांडिंग के खर्चे नहीं उठाने पढ़ते, विज्ञापन और मीडिया का काम अखबार खुद-ब-खुद आहे-बगही खबर छाप कर करता रहता है. ज्यादातर ग्रामीण आबादी नदियों के किनारे बसे होते हैं जिससे उन्हें शराब की भट्ठियां स्थापित करने में ज्यादा खर्च भी नहीं उठाना पड़ता. 
आर्थिक जानकारों का मानना है कि जहां कच्ची शराब का धंधा चल रहा होता है वे इलाके आर्थिक रूप से पिछड़े होते हैं. पुलिस और सरकारों की माने तो कच्ची शराब के चलते अपराधों में भी अप्रत्याशित रूप से वृद्धि होती है. 
लेकिन गाँव-देहात वासियों का कहना इस मंहगाई में वे ब्रांडेड शराब नहीं खरीद सकते, और शराब के बिना - शादी, मुंडन, लगन आदि काम अधूरे माने जाते हैं. यहाँ तक कि गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों की मांग है कि सरकार को महीने में कम से कम एक बार सस्ते अनाज की तरह एक इंग्लिश शराब की बोतल भी देनी चाहिए. 

कच्ची शराब पर आये दिन अखबार अपने - अपने आंकड़े छापते रहते हैं-
  • यूपी में सामान्य दिनों में इसकी खपत करीब दो लाख लीटर रोजाना, होली में चार लाख लीटर तक पहुंच जाती है 
  • कच्ची शराब की बिक्री बढ़ने का एक बड़ा कारण अंग्रेजी और सरकारी ठेके की शराब से इसका दाम कम होना है 
  • विधानसभा में हाल ही में सरकार ने भी माना था कि जहरीली शराब पीने से पिछले साल 87 लोगों की मौत हुई थी
  • उत्तर प्रदेश राज्य के अपर पुलिस महानिदेशक(कानून-व्यवस्था) बृजलाल  ने कहा कि अधिकारियों से कहा गया है कि अगर जिले में कच्ची शराब का सेवन करने से एक भी मौत होती है तो उसके लिए थाना प्रभारी से लेकर पुलिस अधीक्षक तक की जवाबदेही होगी।

इतना तो तय है कि शराब चाहे कच्ची हो या पक्की इसके नुक्सान तो हैं और वो भी जानलेवा. 

बिन बुलाये मेहमान पधारे, घर में ना था पानी

बिन बुलाये मेहमान पधारे, घर में ना था पानी 
बीबी रूठ गयी फिर मुझसे, बोली कड़वी बानी. 
ओ गंवार! ये गाँव नहीं है कुछ तो ख्याल किया होता
मेहमानों से पहले मूरख, पानी मंगा लिया होता
तभी दोस्तों! आधी रात एक बिसलरी लाया...
१२ बजे रात के बाद तब फिर खाना है खाया... 
इसीलिये आ रही नीद अब ऑफिस में झपकी आती
दिल्ली में मेहमान नवाजी 'शिशु' को सच में ना भाती. 

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