Saturday, November 11, 2017

याद सब गुरु'जी और पाठशाला रहें।

दादा रहें, दादी रहें, बनीं बूढ़ी खाला रहें!
पेंशन  बरक़रार  सबकी साठ'साला रहे।

कड़कड़ाती सर्द में हो तापने को आग़,
हाथ में अख़बार, चाय का प्याला रहे।

दोस्तों का साथ हो तब पुरानी याद में,
गप्पबाज़ी के लिए मौजूद म'साला रहे।

जो पढ़े थे साथ बचपन में, जहन में हैं,
उन सभी की ज़िन्दगानी में उजाला रहे।

जिस बदौलत हैं 'शिशु' इस मुक़ाम पर,
वो याद सब गुरु'जी और पाठशाला रहें।

Sunday, November 5, 2017

लाइन लगी कि लगी न लगी, नोट बदलने की है नहि आशा

नरोत्तम दास की प्रसिद्ध कविता 'सुदामा चरित्र' की लय पर आधारित है-
सीस पगा न झगा तन में,
प्रभु जाने को आहि बसे केहि ग्रामा

लाइन लगी कि लगी न लगी, नोट बदलने की है नहि आशा।
लोग लगे वो लगे कहने चहुँओर है छायी घोर निराशा।
नोटबंद से ग़रीब-किसान का' घाटा हुआ है अच्छा-ख़ासा।
पुलिश बजावति लठ्ठ कि, कबहूँ बैंक के बाबू देति दिलाशा।

'मन की बात' रेडियो में कह चौकीदार ने सबको फाँसा।
मीठे-मीठे बोल बोलि 'शिशु' वित्त मंत्री भी देता झांसा।
और भक्त मंडली श्राप देति सबहीं जैसे देते दुरवासा।
काला धन है आया नही कुल बीत गए तीनों चौमासा।

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