Sunday, October 28, 2018

खुशी की कश्तियाँ मुझको अरे दे दो कोई लाकर।

बरसने की जरूरत थी, गरजने क्यों लगे आकर,
कोई आओ बताओ बादलों को बात ये जाकर।

मुसीबत में दुःखों के हर तरफ तूफ़ान दिखते हैं,
खुशी की कश्तियाँ मुझको अरे दे दो कोई लाकर।

वो पहने घूमता कुर्ता, दिलाया हमने उसको था,
हमारी नेकनियती की उसे कर दो खबर जाकर।

उसे करना था अच्छे काम उसको छोड़कर देखो,
लूटता अब खजाना है, गरीबों पर ज़ुलम ढाकर।

शहर केवल अमीरों का, गरीबों के लिए मुश्किल,
गुजारा कर रहे हमलोग, केवल रोटियाँ खाकर।।

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