Thursday, November 20, 2008

धन, स्वास्थ्य और सदाचार में सबसे बड़ा कौन?

हमने स्कूल के दिनों में एक दोहा पढ़ा था। जो इस प्रकार था-

धन यदि गया, गया नहीं कुछ भी,
स्वास्थ्य गये कुछ जाता है
सदाचार यदि गया मनुज का
सब कुछ ही लुट जाता है।

इसी दोहे को कहीं-कहीं पर कुछ इस तरह लिखे देखा था-
धन बल, जन बल, बुद्धि अपार, सदाचार बिन सब बेकार।

इन दोहों का उस समय के मनुष्यों पर क्या असर पड़ता था या उस समय इसके क्या मायने थे, मैं नहीं बता सकता, क्योंकि वे हमारे बचपन के दिन थे। लेकिन अब इसका अर्थ बदला है। अब सदाचार के मायने क्या रह गये हैं हम सभी के सामने हैं। इसके अर्थ को समझने के लिए मैंने इसे तीन भागों में विभाजित किया है। पहले हम सदाचार की बातें करेंगे फिर स्वास्थ्य की और आखिर में धन की।

ऐसा समझा जाता है कि यदि मनुष्य सदाचारी है तो उसका जीवन सफल है। सदाचारी व्यक्ति दूसरों की नज़र में हमेशा प्रसिद्धि पाता है। लोग उसकी बढ़ाई करते हैं। उसके गुणगान करते हैं। हिन्दी के प्रसिद्ध विद्वान डॉ. रामचरण महेन्द्र जी ने सदाचार की परिभाषा कुछ इस प्रकार से की है-‘‘सदाचार ही सुख-सम्पत्ति देता है। सदाचार से ही यश बढ़ता है और आयु बढ़ती है। सदाचार धारण करने से सब प्रकार की कुरूपता का नाश होता है।’’

सदाचार हमें विरासत में मिला है। सदाचार सीखने के लिए किसी स्कूल या धर्मगुरू के पास जाना नहीं पड़ता। यह तो हमारे पूर्वजों की सैकड़ों वर्षों की जमा पूँजी है। किसे नहीं पता कि बड़ों का सम्मान करें, झूठ न बोलें, चोरी न करें, दूसरों का अपमान न करें, पराई स्त्री पर नज़र न रखें। ये सभी सदाचार के गुण ही तो हैं। हम सभी कहेंगे यह सब तो हमें पहले से ही मालूम है। फिर भी आज के समय में लोग सदाचार सीखने के लिए पैसे खर्च कर रहे हैं। यह बात अलग है कि सदाचार सिखाने वाले लोग कितने सदाचारी हैं, कहना थोडा मुश्किल है। आजकल सदाचार सिखाने के लिए बक़ायदा फीस वसूली जाती है। कहने का मतलब यह है कि इन्ही पैसों से सदाचारी गुरूओं, बाबाओं ने खुद के आलीशान बंगलें बनाये हैं। ये धर्मगुरू और बाबा हवाई जहाज से नीचे पैर नहीं रखते। ये बिना एयर कंडिशन वाली गाड़ी में बैठ नहीं सकते। इनके हर देश में आश्रम हैं। इनके साधारण बैंकों से लेकर स्वीज् बैंकों तक एकाउंट्स हैं। ऐसे लोग साधारण जनता को सदाचार का पाठ पढ़ा रहे हैं। उन्हें तो पता है कि हमारा देश हो या विश्व का कोई दूसरा देश उल्लुओं की कमी है नहीं।

सदाचार के पाठ में ही सिखाया जाता है कि स्वस्थ शरीर में स्वस्थ विचार पनपते हैं। हमारे जीवन में स्वास्थ्य का क्या महत्व है। यह सभी को भलीभांति पता है कि आज इस प्रदूषण भरी जिं़दगी में अक्सर लोग बीमार रहते हैं। कोई ही ऐसा होगा जो यह कहेगा कि हम स्वस्थ हैं, हमें कोई बीमारी नहीं है। नहीं तो ज्यादातर लोग किसी न किसी तरह की बीमारी का रोना रोते रहते हंै।

इन सभी चीजों पर गौर करने के बाद अब बारी धन की आती है। इस समय धन का ही अधिक महत्व है। बिना धन के न तो सदाचार सीखा जा सकता है और न ही बिना धन के मनुष्य का स्वास्थ्य ठीक से रह सकता है। आज के युग में मानव ने अपनी आवश्यकताओं को इतना अधिक बढ़ा लिया है कि उसे किसी भी प्रकार से धन चाहिए। धन कमाने के लिए मनुष्य सदाचार को ताख पर रख देता है। आज के मानव की मानवता का मापदंड सदाचार नहीं वरन धन है। आज के समय में निर्धनता सब प्रकार की विपत्तियों का मूल कारण है। श्री ठाकुरदत्त जी ने लिखा है-निर्धन मनुष्य जब अपनी रूचि और मर्यादा के अनुकूल कार्य नहीं कर पाता, तो उसे लज्जा का अनुभव होता है, लज्जा के कारण वह तेज से हीन हो जाता है। तेज से हीन हो जाने पर उसका पराभव होता है। पराभव होने पर उसे ग्लानि होती है। ग्लानि के बाद बुद्धि का नाश होता है। और उसके बाद वह क्षय को प्राप्त हो जाता है।

इस विषय पर जितना लिखा जाय कम ही है। यदि सदाचार पर आप पढ़ना चाहे तो हजारों हजार किताबें पढ़ने को मिल जायेंगी। स्वास्थ्य पर दिनों-दिन रिसर्च हो रहे हैं। बीमारी को दूर भगाने की नयी-नयी तकनीकों को ईजाद किया जा रहा है। इसी तरह बीमारियां भी नयी-नयी पनप रहीं हैं। और अंत में कहा जाय तो धन पर लिखना तो एक प्रकार का धन की बर्रादी ही होगी। धन, धान्य से परिपूर्ण है।

5 comments:

Unknown said...

आपने बहुत सही विषय उठाया है, और उसे बहुत ही स्पष्ट तरीके से प्रमाणित किया है. जीवन में सदाचार का सबसे अधिक महत्त्व है. अफ़सोस की बात यह है कि यह सदाचार ही मनुष्यों के जीवन से गायब हो रहा है.

P.N. Subramanian said...

अब विरासत में कुछ ग्रहण नहीं करते. अब युवा स्वावलंबी हो गई है ना?! आभार.
http://mallar.wordpress.com
कृपया टिप्पणी के लिए वर्ड वेरिफिकेशन की आवश्यकता को हटा दें. यह टिप्पणीकार के लिए बड़ी दुखदायी है.

परमजीत सिहँ बाली said...

अच्छा आलेख हैआभार।

Shishupal Prajapati said...

प्रिय शिशुपाल भाई
सदा की भांति एक बार फिर आप ने बहुत ही संजीदगी के साथ लिखा है ! आप ने बड़े ही खुबसूरत तरिएके से विषय को छुवा है.
आप युही लिखते रहे और लोगो को आपके लेख का इंतजार रहे , यह मेरी शुभकामना है.
सुधीर

Sudhir K. Rai said...

प्रिय शिशुपाल भाई

सदा की भांति एक बार फिर आप ने बहुत ही संजीदगी के साथ लिखा है ! आप ने बड़े ही खुबसूरत तरिएके से विषय को छुवा है.

आप युही लिखते रहे और लोगो को आपके लेख का इंतजार रहे , यह मेरी शुभकामना है.

सुधीर

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